JIMEWAR KAUN?/जिम्मेवार कौन

मुद्दतों बाद घर में रौशनी थी आई,
बुझ गए दीपक हवा किसने चलाई।
आए थे गाँव छोड़ ख्वाब लिए शहर में,
बेच खलिहान घर बनाए इस शहर में,
राख हुए अरमां,आग किसने लगाई,
बुझ गए दीपक हवा किसने चलाई।
पत्थर ही पत्थर बिखरे हैं राह में,
गुमशुम,उदास संग दिखते हैं राह में,
दिल बेरहम रक्त किसने बहाई,
बुझ गए दीपक हवा किसने चलाई।
बस्ती इंसान की इंसान नही दिखते,
अल्लाह कहाँ भगवान नही दिखते
नफरत की आग ये किसने लगाई,
बुझ गए दीपक हवा किसने चलाई थी।
कौन है वो कातिल मेरे बुझे इस चिराग का,
कहाँ है वो मुजरिम मेरे उजड़े इस बाग का,
अश्क भरी आँखें,आस किससे लगाई,
बुझ गए दीपक हवा किसने चलाई,
बुझ गए दीपक हवा किसने चलाई।
!!!मधुसूदन!!!

Image Credit: CNN

18 Comments

    • निश्चित ही सियासतदार कुसूरवार हैं। हम भी कुछ कम नही।
      कब हम जाति धर्म से पहले इंसान बनेंगे।
      कब धर्म से ऊपर कानून बनेगा?
      जो लोग संविधान की बातें करते हैं वही संविधान की धज्जियां उड़ाने में मशगूल हैं।
      CAA भला 25 करोड़ जनसख्या को कैसे अपने हक से बेदखल कर देगी। इतना समझ सबको है फिर भी आंदोलन! दुखद।

  • कहां है वह मुजरिम मेरे उजड़े इस बाग का ……..बढ़िया पंक्तियां।

  • सीरिया यमन इराक ईरान अफगानिस्तान पाक इत्यादि कारण एक कट्टरवाद इस्लामिक आतंकवाद … भारत में भी बीच बीच में इसकी झलक दिख जाती …

    • दुखद है भाई।कुछ नही मिलनेवाला। एक दिन इनको भी ऐसे ही मरना होगा।

  • दो हाथियों की लड़ाई में
    सबसे ज़्यादा कुचली जाती है
    घास, जिनका
    हाथियों के समूचे कुनबे से कुछ लेना देना नहीं
    जंगल से भूखी लौट जाती है गाय
    और भूखा सो जाता है घर में बच्चा ।

    – उदय प्रकाश

    बढ़िया लेखन

    • कितनी खूबसूरत पँक्तियाँ।वाह दिल को छू लिया।
      सच लिखा है उन्होंने। दोनों कुनबे आये जिसकी जितनी ताकत या कहें तैयारी आग लगाए। जलना तो हमें ही था ।जल गए।

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