KAISI NAFRAT/कैसी नफरत?

जितना हक इस जग पर मेरा उतना ही हक तेरा जी,
फिर क्यों चमन उजाड़े तूने किस नफरत ने घेरा जी।
अनशन,धरना,मांग,आंदोलन सब सरकार से तेरा जी,
फिर क्यों बाग उजाड़े मेरे, किस नफरत ने घेरा जी।

ये वर्षों की थी नफरत,थी पलभर की जज्बात नही,
चुन-चुन पत्थर बरस रहे थे तुम इससे अनजान नही,
बहकावे की बात बोलकर खुद को पाक ना कहना तुम,
तेरी साजिश वर्षों की खुद को अनजान ना कहना तुम,
अरे बेदर्दी संग संग खेले नफरत की कुछ बात नहीं,
आस पास रहते मिलजुल कब झगड़े हम ये याद नही,
तूने राखी भी बंधवाया,तुमने गोद में जिसे खिलाया,
नाम पुकारे कलतक जिसका वो धड़कन था तेरा जी,
फिर क्यों कोख उजाड़े तूने किस नफरत ने घेरा जी।

इंसानों की तड़प,चीख से कौन मनुज हँसता है बोलो,
औरों के घर आग लगाकर किसका घर बसता है बोलो,
बोलो बदन जलाकर किसने उस तेज़ाब से ठंडक पायी,
शोणित की जलधार बहाकर बोलो किसने प्यास बुझाई,
कलतक तुम थे साथ तुम्हारा सब अपनापन देख लिए,
एसिड,पत्थर,बम,बंदूकें,वहशी तेरे देख लिए,
देख लिए सब प्रेम तुम्हारे,बिखरे सब अरमान हमारे,
बिखरे पत्थर जिस पथ,है घर मेरा भी घर तेरा भी,
फिर क्यों चमन उजाड़े तूने किस नफरत ने घेरा जी।

तिनका तिनका जोड़ बनाया फिर वो महल बनाऊँ कैसे?
इंतजार रहता आने का उसको पुनः बुलाऊँ कैसे?
कैसे तेरा रूप भुलाऊं,कैसे लौट गाँव अब जाऊँ,
कैसे फिर मैं ख्वाब सजाऊँ,ख्वाब जले सब मेरा जी,
क्यों ये चमन उजाड़े तूने किस नफरत ने घेरा जी।

क्या लेकर के आए जग में क्या लेकर तुम जाओगे,
आज तड़पते हैं हम एक दिन तुम भी नीर बहाओगे,
कौन रहा है कौन रहेगा,तूँ भी एक दिन नही बचेगा,
मेरा सूरज आज ढला,ना तेरा दूर अंधेरा जी,
क्यों ये चमन उजाड़े तूने किस नफरत ने घेरा जी,
क्यों ये चमन उजाड़े तूने किस नफरत ने घेरा जी।
!!!मधुसूदन!!!









13 Comments

  • किसे इल्ज़ाम दे रहे हैंआप ,जब दोनों में प्यार रहा,कुछ ध्यान रँग वतन का रख लो,याद उन्हें भी करो जरा जो बीज फूट का बो कर ऐश आज कर रहा।

    • सेराजेवो हत्या कांड विश्वयुद्ध का जैसे तात्कालिक कारण था आज किसी के द्वारा भड़काऊ बयान देना भी तात्कालिक कारण ही था। गुलेल,पेट्रोल बम और पत्थरों की भरमार ये साबित करने के लिए काफी है कि बुनियाद पहले से रची जा चुकी थी। वैसे दो गुटों की लड़ाई में बेकसूर मारे जाते हैं और अब भी ऐसा ही हुआ। चाहे जिस जाति धर्म के लोग झुलसे हम जैसे लोगों का कलेजा फट पड़ता है। हम तड़पने वाले का धर्म नही देखते। काश किसी के बहकावे या उन्मादी भाषण में ना आकर लोग अपने काम में लगे होते तो आज ये नौबत नही आती।

  • सरकार कटघरे में खड़ी है ।जनता इंसाफ को तरस रही है , जिसकी लाठी उसकी भैंस से प्रशासन आंका जा रहा है ,सब कुछ संविधान के इधर होते हुए भी स्वयं को संविधान का रक्षक ठहराया जा रहा है ।शासन की राक्षसी प्रवृत्ति के लिए उत्तरदाई कौन है वह जनता जिसने शासन पर विश्वास किया या वह प्रशासन जो चंद सिक्कों की खंखनाहट के आगे अपने ज़मीर का सौदा कर लिया या धर्म की चादर औधे बेरोजगार निठल्ला युवा ??????

  • अच्छा लिखा है आपने भाई, पर कौन पढता है? उन्माद जब सवार हो जाता है सर पे, नैतिकता के पाठ धरे के धरे रह जाते हैं. क्या कहूँ, स्तब्ध हूँ पर सरकार को कटघरे में तो खड़ा करूँगा..वे अपनी जिम्मेवारी से भाग नहीं सकते

    मुफ्त की बिजली देकर
    चिराग घरों के बुझा दिए
    मुफ्त की पानी देकर
    आग घरों में लगा दिए

    • बिल्कुल भाई।
      कुछ मूर्खों की जमात,
      कुछ नेताओं का साथ था,
      आग लगानेवाले लगाकर चले गए
      फिर
      फिर मरनेवाले भी हम
      और मारनेवाले भी हम।
      अब घरों में बिजली तो रहती है
      पानी भी
      मगर इंसान नही रहते।

  • Indeed a deep post. Each line is speaking. One have to look within its own soul and ask why are they behaving like a devil. Why are you expecting others to show humanity when you yourself have forgotten its meaning.

    • Duruodhan ko bahut samjhaya gaya thaa magar uski krurtaa ke badle daya kabtak..? Akhir me wahi hua jiska wo patra thaa……magar yahan raundnewala koyee aur evam tadapne wala koyee aur hai….sath hi badle ki aag me jhulas koyee aur raha hai…….aag lagaanewale aag lagakar kahi aur chale gaye……
      kuchh gaddaar hain jinka saath
      netawon kaa hai,
      aur kuchh saath murkhon kaa,
      aur jhulas raha hai desh.

    • Ji bilkul…sunkar sthiti ruh kanp jaati hai……hathiyon ki jhund ki tarah daudte raundte log aur apni jaan bachaane ki jadojahad karte log……ye kaisaa haque……ye kaisaa dharm.

    • Jab jab manvta par sankat aayaa hai tab tab koyee shakti in vahshiyon ko ant karne ke liye janm leta hai……vahshipan abhi charmotkarsh par hai.

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