दबकर दिल में रह जाती है बात,
बहुत कुछ कहने को,
बनकर आए जो हमराज,
निभाने जीवन भर का साथ,
वही जब पढ़ ना सके इन आँखों के जज्बात,बचा क्या कहने को,
दबकर दिल में रह जाती है बात,बहुत कुछ कहने को।
कलतक जिनके प्राण हमीं शहजादे थे,
कोरे सारे कसमें झूठे वादे थे,
दिए जो खुशियों की शौगात,
दिए वे ही मातम की रात,
नजर में प्रेम हो जिनके केवल एक लिबास,बचा क्या कहने को,
दबकर दिल में रह जाती है बात,बहुत कुछ कहने को।
उनके छल और धोखे की क्या बात करूँ,
जिसको अब भी मैं उतना ही प्यार करूँ,
बना बेदर्दी खुद हमदर्द,
सुना ना कोई दिल का अर्ज,
गया सब लूट वही जो था मेरा मेहताब, बचा क्या कहने को,
दबकर दिल में रह जाती है बात,बहुत कुछ कहने को।
दबकर दिल में रह जाती है बात,बहुत कुछ कहने को।
!!!मधुसूदन!!!

aruna3 says
बेहद उदास नज़्म है,दिल की गहराईयों में उतर जाते हैं उदास जज़्बात।क्यों नहीं खुशी के गीत दिल की नहीं करते बात?
Madhusudan Singh says
गमों की दरिया के उस पार है खुशी के गीत।धन्यवाद आपका।