भूख/BHUKH
आपदा भारी,मजबूर सभी,
बेबस कौन?ये सवाल ना पूछो,
लाचारी सर्वत्र है फिर भी,मजदूरों के हालात ना पूछो।
मशीन एक लोहे की,दूजा हाड़-मांस का,
संकट में वतन,
मशीनों के जज्बात क्या,
ताले जड़े कर्मस्थल पर,
अल्लाह कहाँ मलिकार ना पूछो,
लाचारी सर्वत्र है,मजदूरों के हालात ना पूछो।
ऐ दिल मत रो,तेरा कोई दातार नही,
भूख तो सर्वत्र तांडव करती,
तेरा कोई घर-द्वार नही,
यही बात खुद को समझाते,
लाख कोशिशों के बावजूद
गांव बहुत याद आते,
जहाँ निर्धनता है मगर संवेदना जिंदा,
कंक्रीट का शहर नही मगर मानवता जिंदा,
सरकार का सहयोग लगातार जारी,
जिसपर चंद निर्मम की निर्ममता भारी,
आपदा यहाँ भी,संकट वहाँ भी,
छोड़ आए क्यों वर्षों पहले,
उस उजड़े चमन का वजह-ए-मुश्किलात ना पूछो,
लाचारी सर्वत्र है,मजदूरों के हालात ना पूछो।
!!!मधुसूदन!!!

सत्य है😞
धन्यवाद आपका।🙂