Phir Bebas Ek Kisan

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*जून 2017 की हृदयविदारक सच्ची घटना पर आधारित कविता।*

रात का गहरा अंधेरा,नर को एक तूफान घेरा,
एक ऐसी रात आयी,देख ना पाया सवेरा।2
तीन एकड़ काश्तकारी,
बाप ने दी जिम्मेवारी,
चाँद सी दुल्हन मिली थी,
चल रही थी बैलगाड़ी,
दिन गुजरता बैल संग में,
रात दामन चाँद संग में,
रूखी-सूखी मेवे जैसी,
जश्न जैसा जान संग में,
पूस का शीतल पवन या,
जेठ की तपती लहर,
बैल संग खेतों में अबिचल,
चाहे बारिश की कहर,
जोश यौवन में भरा था,
आग के जैसा बना था,
हारना उसने न जाना,
काल भी उससे डरा था,
वीर की छोटी जहाँ में,स्वर्ग का मानो बसेरा,
एक ऐसी रात आयी,देख ना पाया सबेरा।2

दिन जवानी के गुजर गए,
बोझ जीवन मे थे बढ़ गए,
साथ एक बिटिया सयानी,
सोच शादी के थे बढ़ गए,
रब की उसने की दुहाई,
बिनती शायद रास आई,
तीन बरसों बाद अबकी,
स-समय बरसात आई,
अबकी खेती खूब होगी,
हाथ बिटिया पीली होगी,
दुख मिटेंगे सब हमारे,
सुख की अब बरसात होगी,
बैल बूढ़ा बेच डाला,
घर से पैसे सब निकाला,
बैल जोड़े साथ लाने,
सोचकर बाजार भागा,
बैल की महंगी बड़ी थी,
हाथ पैसों की कमी थी,
मेले में सब ख्वाब उसकी,
धूल-धूसरित हो गई थी,
डगमगाए पैर उसके,आँख पर छाया अंधेरा,
एक ऐसी रात आयी,देख ना पाया सबेरा।2
खुद को उसने फिर सम्हाला,
मन मे फिर एक आस जागा,
अब किसानी लोन लेंगे,
दूर होगी सारी बाधा,
सोंचते ही बैंक भागा,
लोन अर्जी उसने डाला,
पर मिली ना लोन उसको,
चढ के सीढियां उसने हारा,
हाय रब,हाय जमाना,
तू कृषक ना दर्द जाना,
एक छोटी सी खुशी भी,
देख ना पाया जमाना,
लौ हुआ मद्धिम बना चट्टान को तूफान घेरा,
एक ऐसी रात आयी,देख ना पाया सबेरा।2

देख चिंतित,मन मे किंचित,
भय बढ़ी उस चाँद को,
जिसने जीवन भर ना देखा,
इतनी दुखिया जान को,
जानकर सारी विवशता,
धैर्य देती जान को,
नथिया,झुलनी जो भी था,
सब दौड़ देती प्राण को,
देखकर भयभीत बोली,
कुछ ना सोचो जान तुम,
गर तुझे कुछ हो गया तो,
ना बचेगी चाँद सुन,
सुन जुताई भाड़े की,
ट्रेक्टर से हम करवाएंगे,
होगी जब अच्छी फसल हम,
ब्याह फिर करवाएंगे,
पर कृषक था मौन,जैसे एक लहर को बांध घेरा,
एक ऐसी रात आयी,देख ना पाया सबेरा।2
टर्टराहत मेढकों की,
झींगुरों की शोर में,
रो रहा था एक कृषक उन,
बादलों की शोर में,
दिन में था खूब खेला,
अपनी बिटिया साथ में,
चूमकर माथा निहारा,
अपनी बिटिया जान के,
चाँद ने समझा हमारी,
बात उसने मान ली,
आज पहली बार ना मन,
समझी अपने जान की,
रात में फँदा लगाया,
आँख झरझर बह रहे,
झूल गया फँदे से तन में,
प्राण उसके ना रहे,
मौन है धरती-फलक क्यों,
मौन है भगवान तुम,
क्या कृषक की जान की,
कीमत नही भगवान सुन,
या तुम्हारा नाम झूठा,
या किसानी है सजा,

फिर झुका इंसान,महंगी का चला उसपर हथौड़ा।
मौत बन एक रात आयी,देख ना पाया सबेरा ।2।

Cont part…2

महंगी ने ली ली फिर से जान एक किसान की,
सचमुच में मुश्किल में है जान अब किसान की,
महंगी ने ली ली फिर से जान एक किसान की।

!!! मधुसूदन !!!

68 Comments

    • बहुत बहुत धन्यवाद आपका पसन्द करने के लिए।

    • बहुत बहुत धन्यवाद आपका पसन्द करने और सराहने के लिए। काफी समय बाद आपकी प्रतिक्रिया का जवाब दे पाए क्षमा उसके लिए।

      • I live among farmers so i know-how much they do hard work for country.now all polticians have forgotten the quote of shastri ji (former PM)-“JAI JAWAAN;JAI KISAAN.

    • koyee kisaan atmhatya kis paristhiti me karta hai uske ghar ke haalaat ke baare men sonchkar rooh kaanp jaataa hai….sukriya aapne unke dard ko mahshuh kiyaa…….waise aap kisaano ke prati aap jyaadaa jaagruk hain.

      • Thank you Sir par yeh paristhiti aisi hai ki kisi ko bhi kisano ki aise awastha dekh ke data aani he chahiye. Ek insan itna majboor ho jata hai paise aur bookh ke haathon ki use apni jaan lena jeene se zyada aasan lagta hai – ab bataiye yeh jeewan ka kaisa khel hai?

        • Majdur majduri karke jee leta hai …..jis din kaam nahi milaa ho saktaa hai bhukhe bhi raat gujaar leta hai ……magar kisan apne ghar ke sare anaaj khet me daal detaa hai….upar se karj lekar,gahne,khet dirvi rakh paise kheton me daal detaa hai ki shayad fasal achchhi hogi tab ham bitiya ka byaah karenge aadi aadi…….magar jab saare aarmaan uske prakriti ke dwara kuchle jaate hain yaa sarkari tantra ke dwara phir use jeene se jyaadaa marnaa aasaan dikhne lagta hai….nischit inke dard agar kisi ko nahi dikhta wo insan kaisa……sukriya aapke itne bade dil ke liye ……jo majburon ke prati itna samvedanshil hai……kash sarkar bhi itna samvedanshil hoti.

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