Kabhi Alvida Na Kahna

खरपतवार को स्वयं निकाला,
एक-एक वो पौध लगाया,
कलतक खिला हुआ था अब वो,
बगिया है वीरान,माली छोड़ चला,
अपना घर-संसार,माली छोड़ चला।
कितने युग संघर्ष किया तूँ,
मरुस्थल को स्वर्ग किया तूँ,
है अब वही स्वर्ग वीरान,
माली छोड़ चला,
अपना घर-संसार,माली छोड़ चला।
पथ पर उमड़ा जन-सैलाब,
अंतर्मन मन मे एक भूचाल,
रुँधे गले,नयन में अश्क,
मैं क्या जानूं क्या है सत्य,
खोया कहाँ पड़ी है बगिया ये वीरान,
माली छोड़ चला,
अपना घर-संसार,माली छोड़ चला।
!!!मधुसूदन!!!

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18 Comments

  • गीत नही गाता हुँ |
    बेनकाब चेहरे हैं , दाग बड़े गहरे हैं।
    टूटता तिलिस्म,
    आज सच से भय ख़ाता हूँ | गीत नही गाता हुँ |
    लगी कुछ ऐसी नज़र, बिखरा शीशे सा शहर,
    अपनो के मेले में मीत नही पता हूँ, गीत नही गाता हुँ |
    पीठ में छुरी सा चाँद, राहु गया रेखा फाँद,
    मुक्ति के क्षण में , बार बार बाँध जाता हूँ, गीत नही गाता हुँ |
    ……….
    गीत नया गाता हूँ|
    टूटे हुए तारों से , फूटे बसंती स्वर.
    पत्थर की छाती में उग आया ना अंकुर,
    झड़े सब पीले पात, कोयल की कुक रात,
    प्राची में अरुणिमा की रेत देख पता हूँ, गीत नया गाता हूँ|
    टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी,
    अंतः की चिर व्यथा, पलाको पर ठिठकी,
    हार नही मानूगा, रार नही ठानुगा,
    कल के कपाल पर लिखता, मिटाता हूँ|
    गीत नया गाता हूँ|

    • बिल्कुल।ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें।

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