Andhi Daud

जीवन सफर में मिलते हैं लाखों, सबको क्या अपना बनाता है कोई,

हम सब मुशाफिर  हैं सुनी सड़क के, मंज़िल सफर में पाता है कोई ।

बचपन में अपना निवाला खिलाया, बाहों के झूले में जिसने झुलाया,
हर जिद पूरा किया जिसने हंसकर, बुढ़ापे में उसको रूलाता है कोई ,
हम सब मुशाफिर  हैं सुनी सड़क के, मंज़िल सफर में पाता है कोई ।

बचपन से मिलना बिछड़ते रहे हैं, अपना बना फिर छलते रहे हैं,
मंज़िल मिली प्यार में छलते छलते, प्यासा मगर खुद को पाता है कोई,
हम सब मुशाफिर  हैं सुनी सड़क के, मंज़िल सफर में पाता है कोई ।

कैसी ये चाहत लगी हम सभी को, अपनों को खुद ही मिटाने लगे हैं,
जिसने बना दी अपनी ये दुनियां,उसकी ख़ुशी को भुलाने लगें है,
अब तो रुको और मुड़कर के देखो, बरसों से कोई बुलाता है तुमको,
बाहों में लेकर जमाने की खुशियां यादों में अब भी बसाया है तुमको,
आ लौट जा अब पत्थर पिघल जा तड़पकर के तुझको बुलाता है कोई,
हम सब मुशाफिर  हैं सुनी सड़क के, मंज़िल सफर में पाता है कोई ।
जीवन सफर में मिलते हैं लाखों, सबको क्या अपना बनाता है कोई |

!!! मधुसूदन !!!

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