Anndaata/अन्नदाता
गोरे बदन जब काले हो जाते,
तन पर के कपड़े भी चिथड़े हो जाते,
सूरज की ताप जब हार मान जाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
खेतों में पौधों को सींचता है ऐसे,
थाली में मोती सजाता हो जैसे,
खून-पसीने से फसल जब नहाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
काँधे पर हल और जुआठ लिए चलता,
बैलों के संग-संग बैल बन के रहता,
आंधी तूफान जब हार मान जाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
सोने और चांदी से भरते खजाने,
कीमत अनाज की पेट पहचाने,
कोठी अनाज विहीन हो जाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
है कौन जो प्रेम करता है इससे,
मतलब के रिश्ते रखता है इससे,
कहते धनिक नाक अपनी दबाए,
पसीने की बदबू आती है इससे,
नियति,नियत से लड़ता किसान,
अथक परिश्रम करता किसान,
भरता जगत का यही पेट और खुद,
दो वक्त रोटी को मरता किसान,
पीठ-पेट सटकर जब एक हो जाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
!!!मधुसदन!!!
Annadata sukhi bhava! Desh ke kisano ko shat shat pranam. A profound poem from your pen Madhusudan!
Thanks for appreciation….
बहुत प्रभावशाली रचना है।
Sukriya apne pasand kiya aur saraaha..
Nice lines
Thank you very much..
किसान की हालत वाकई बहुत ख़राब है ,
बहुत अच्छा लिखा आपने
सुक्रिया मुकान्शु जी आपने पसंद किया और सराहा।
बखूबी सत्यता का वर्णन
सुक्रिया अपने पसंद किया और सराहा।
🙂🙂
Waah sir ji. Kya khub sach likh diya . Very nice lines.
Sukriya apne pasand kiya aur saraaha.
Reblogged this on Die Erste Eslarner Zeitung – Aus und über Eslarn, sowie die bayerisch-tschechische Region!.
अन्नदाता की वास्तविकता
खुद भूखा और औरो को जिलाता
अतिसुंदर भाई
Sukriya apne pasand kuya aur saraha….suprabhat.
Beautiful!! Truly defined!!
Thank you for your valuable comments.
My pleasure sir 😊
very nice ..
Thank you very much.