Anndaata/अन्नदाता
गोरे बदन जब काले हो जाते,
तन पर के कपड़े भी चिथड़े हो जाते,
सूरज की ताप जब हार मान जाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
खेतों में पौधों को सींचता है ऐसे,
थाली में मोती सजाता हो जैसे,
खून-पसीने से फसल जब नहाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
काँधे पर हल और जुआठ लिए चलता,
बैलों के संग-संग बैल बन के रहता,
आंधी तूफान जब हार मान जाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
सोने और चांदी से भरते खजाने,
कीमत अनाज की पेट पहचाने,
कोठी अनाज विहीन हो जाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
है कौन जो प्रेम करता है इससे,
मतलब के रिश्ते रखता है इससे,
कहते धनिक नाक अपनी दबाए,
पसीने की बदबू आती है इससे,
नियति,नियत से लड़ता किसान,
अथक परिश्रम करता किसान,
भरता जगत का यही पेट और खुद,
दो वक्त रोटी को मरता किसान,
पीठ-पेट सटकर जब एक हो जाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
!!!मधुसदन!!!
शानदार
Sukriya Ashok ji.
बिल्कुल सही लिखा है सर, किसान का दर्द बस किसान को ही पता है। हमारी सरकार और कोठियों में एयर कंडिशन में रहने वालों को कहाँ समझ आता है कि रोटी कैसे आती है।
Sukriya apne dard ko samjha aur saraha.
Ji sir kyonki khud mahsus kiya hai maine ye dard, mai bhi kisan pariwar se hi hu
तबतो आपको पता होगा कि एक मजदूर मजदूरी कर कितना खुश है और किसान किसानी कर कितना दुखी।।
बिबस है बेचारा जाए तो कहां जाए।
पुरखों की जमीन छोड़ी भी नही जाती।।
जी यही तो विडंबना है, पुरखों की जमीन छोड़ नहीं सकते और छोड़ भी दें तो रोटी कहाँ से आयेगी।
रोटी तो शाम्भवी जी दूसरे काम से भी बेहतर ढंग से आ जायेगा परन्तु ये पुरखों की जमीन दूसरा कोई काम करने कहां देती है साथ ही कभी भोज कभी विवाह के नाम खिसकते जा रही है और किसान तिल तिल कर मरते जा रहे हैं।
जी रोटी तो दूसरे कामों से आ सकती है, पर ये खेती किसान को किसी और काम के लायक छोड़ती कहाँ है सर, और जमीन को छोड़कर कहीं और से जो रोटी आएगी उसमें वो सुकून भी तो नहीं होता
बिल्कुल सही कहा आपने।उसी सुकून की तलाश में हमारी उम्र गुजर जाती है ।सुक्रिया आपने अपने बहुमूल्य विचार शेयर किया।धन्यवाद आपका।
Ji, apka bhi bahut bahut dhanyabad itni sundar kavita k madhyam se kisano ki sthiti ko ujagar karne k liye 😊
स्वागत आपका।
मैंने एक और कविता किसानों के स्थिति पर लिखा है आप जरूर पढ़ें शेयर कर रहा हूँ
https://madhureo.wordpress.com/2017/07/08/1243/
जी, पढ़ूँगी मैं
Khubsurat Kavita…
Sukriya apne pasand kiya aur saraha.
सही बात है । पर आजकल किसान के बारे मे सोचता कौन है
bilkul sahi kaha ……logo ko kisan par bilkul dhyan nahin hai….
पीठ-पेट सटकर जब एक हो जाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है,
तब जा के खेतों में पौध लहलाती है।
ye panktiyan shat pratishat sach hai
aj bachhon ki school ki fees nhi de pa rha kisaan aur sarkar bol rhi hai ki kisano ki sthiti sudhri hai
pichle 2 saal se fasal ka sahi daam nhi mil pa rha kisano ko
dhanyaavaad itni achhi post likhne ke liye
sukriya hausal badhane ke liye……..kisanon ka bahut bura haal hai…..jitna lagat lag raha hai utna utpadan nahi ho raha …….ek majdur saal men jitna kamata hai utna bhi ek kisaan saal men nahi kama paata ….sochiye uski kya sthiti hai….
haan vhi to pta ni kya hoga bhavshya mai bhagwan jane sarkar ko to tension nhi
वाह सर बहुत खूब
Sukriya apka..
https://sanskriti977.wordpress.com/2017/10/27/a-day-will-come/ please go through my new post
अन्नदाता की व्यथा का मार्मिक चित्रण।
Sukriya apne pasand kiya aur saraahaa.