Antarkalah

क्या क्या सहा ये वतन हँसते-हँसते,
किसे ये दिखाये जखम हँसते-हँसते।

जिगर में जिसे अपना इसने बसाया,
माथे की बिंदिया जिसे था बनाया,
कभी नाज़ करती जहाँ,जिसके बल पर,
उसी ने उजाड़े खुशी इस चमन के
किसे ये दिखाये जखम हँसते-हँसते।

सदियों से देखी कई सभ्यताएँ,
ढली ये स्वयं जैसा हमने बनाये,
कई सरहदों में इसे हमने बांटा,
झंडे कई इसके दामन में साटा,
मगर कब हंसी क्या कहे हंसते-हंसते,
किसे ये दिखाये जखम हँसते-हँसते।।

कई रौंदने इस जहां को थे आये,
कई थी निशानी जिसे वे मिटाये,
कई बस गए इस जहाँ ने बसाया,
मगर रक्त की धार उसने बहाया,
जहाँ लाल थी वे,हरा कर रहे थे,
बसे जिस जहाँ पर,दगा कर रहे थे,
कभी ना लड़े साथ गीता, कुरान,
पढ़ा ना इसे वे हमें ठग रहे थे,
तड़प थी ललन दो लड़े रस्ते, रस्ते,
किसे ये दिखाये जखम हँसते-हँसते।

मगर आज भी हम वहीं पर अड़े हैं,
हरे, लाल अपनी जगह पर खड़े हैं,
अरे धर्म वालों ये नफरत हटाओ,
हरे,लाल में फिर जहां ना मिटाओ,
सजी एक रंग में वतन है तुम्हारा,
तिरंगे में आ अपनी रंग को मिलाओ,
सिसकती वतन क्या कहे दर्द हंसके,
किसे ये दिखाये जखम हँसते-हँसते।

चाहत बिना यहाँ कुछ भी नहीं है,
मगर चाहतों से बुरा कुछ नहीं है,
इसी चाहतों ने वतन को है लूटा,
मिटा दी सभी सिलवटें इस चमन के,
किसे ये दिखाये जखम हँसते-हँसते,
किसे ये दिखाये जखम हँसते-हँसते।

!!! मधुसूदन !!!

AntarKalah

Kya-kya sahaa ye watan haste-haste,
Kise ye dikhaaye jakham haste haste,

Jise esne apne jigar men basaayaa,

Maathe ki bindiyaa jise thaa banaayaa,

Kabhi naaz kartaa thaa ye jish ke bal par,

Usi ne uzaade chaman haste-haste,

Kise ye dikhaaye jakham haste-haste,

Chahat binaa jag men kuchh bhi nahi hai,

Magar chaahton se buri kuchh nahi hai,

Esi chaahton ne watan ko hai lutaa,

Mitaa di sabhi silwaten haste-haste,

Kise ye dikhaaye jakham haste-haste,

Kise ye dikhaaye jakham haste-haste,

!!! Madhusudan !!!

43 Comments

Your Feedback