Baalak Dhruv 

“ૐ नमो भगवते वासुदेवाय”
“ૐ नमो भगवते वासुदेवाय”
गूंज  उठा इस मंत्र से, धरती- अम्बर संग ब्रम्हांड  रे,
पाँच साल का बालक ध्रुव,जप करता विष्णु ध्यान रे।
मनु पुत्र ब्रम्हा का जिनका,
जग में दो संतान हुआ,
नाम एक उत्तानपाद,
राजा का चर्चा आम हुआ,
उस राजा की एक ही रानी,
नाम सुनीति सुकुमारी,
वर्षों बीत गए थे फिर भी,
सूत सुख से वंचित प्यारी,
बार-बार समझाती रानी,
दूजा ब्याह रचाने को,
राजा समझाता क्यों पागल,
प्रेम में जहर मिलाने को,
दूजा ब्याह से मान घटेगा तेरा,
तुझे बताऊं मैं,
बटवारा फिर प्रेम का होगा,
कैसे अब समझाऊँ मैं,
मुझे भरोसा स्वामी तुमपर,
ऐसा नहीं कभी होगा,
गोद भरेगी सुनी अपनी,
किलकारी आंगन होगा,
बार-बार जिद के आगे फिर,
अंत मे राजा मान गया,
पत्नी के इस त्याग के आगे,
पति का जिद फिर हार गया,
नाम  सुरुचि  के  संग  राजा, अंत  मे किया ब्याह रे,
पाँच साल का बालक ध्रुव,तप करता विष्णु ध्यान रे।

बिधना ने क्या किस्मत लिखा,
एक अभागन रानी के,
खुश थी कितनी पति लुटाकर,
उसी सुनीति रानी के,
रूपवती ने रूप में अपने,
राजा को फिर फांस लिया,
त्याग की देवी पुत्र की खातिर,
पति का अपना दान दिया,
कालान्तर में प्यार मिला ना,
मगर कोख आबाद हुआ,
गोद में दोनों रानी को फिर,
एक-एक संतान हुआ,
हर्षित  राजा-प्रजा, राज्य में  होती जय- जय गान रे,
पाँच साल का बालक ध्रुव,तप करता विष्णु ध्यान रे।
धन दौलत से भरा खजाना,
राजा के दरबार मे,
फिर भी द्वेष से भरी सुरुचि,
के हृदय संसार में,
उत्तम नाम सुरुचि का सुत,
ध्रुव था पुत्र सुनीति का,
पुत्र पिता को प्यारे दोनों,
ध्रुव से द्वेष सुरुचि का,
राजा के गोदी मे हर पल,
उत्तम को वह रखती थी,
कब बैठेंगे गोद पिता के,
ध्रुव की आँख तरसती थी,
हृदयहीन  सौतेली  माँ  की  कितना  करूँ बखान रे,
पाँच साल का बालक ध्रुव,तप करता विष्णु ध्यान रे।

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एक दिन पिता अकेला पाकर,
ध्रुव गोदी में बैठ गया,
प्यार पिता का पाने को,
बालक का छाती फैल गया,
देख लिया सौतेली माँ,
गुस्से में आंखे लाल हुई,
खींच उसे धरती पर पटका,
रूपवती विकराल हुई,
दुष्ट नहीं तुम मेरा जाया,
ना है उत्तम जैसा तुम,
राजसिंघासन या राजा के,
ना है गोद के काबिल तुम,
रो- रोकर  फिर  बालक  माँ  से पूछे, कई सवाल रे,
पाँच साल का बालक ध्रुव,तप करता विष्णु ध्यान रे।

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प्यार से ध्रुव को माँ समझाती,
नैतिकता का पाठ पढ़ाती,
क्रोध के बदले क्रोध ना करना,
मन मे उसका प्रेम बढ़ाती,
अगर गोद में जाना तुमको,
विष्णु ध्यान लगाओ तुम,
वही तुम्हारे प्रथम पिता हैं,
उनकी शरण मे जाओ तुम,
कोमल मन  यह बात बसा, हैं पिता  मेरे  भगवान रे,
पाँच साल का बालक ध्रुव,फिर करता विष्णु ध्यान रे।
राजमहल का त्याग किया फिर,
पाँच साल की आयु में,
घोर तपस्या ध्रुव ने की फिर,
पाँच साल की आयु में,
दिल मे दर्द,आँख में पानी,
होठ पर बस नाम प्रभु,
जल में होकर खड़ा पुकारे,
कहाँ छुपे हे नाथ प्रभु,
उसके तप से धरती-अम्बर,
इंद्र का आसन डोल उठा,
पाँच साल के बालक के,
हठ से क्षीरसागर डोल उठा,
छह  माह  की  कठिन  तपस्या, से हिलता  संसार रे,
पाँच साल का बालक ध्रुव,फिर करता विष्णु ध्यान रे।

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बालक के इस जिद ने,
विष्णु को धरती पर ले आया,
देख प्रभु को सम्मुख बालक,
विह्वल मन सब बतलाया,
मुझे पिता के गोद से फेका,
इतना कहने आया हूँ,
गोद बिठा लो पिता हमारे,
तेरी शरण मे आया हूँ,
हर्षित सुन भगवान हुए,
खुद गोद मे ध्रुव स्थान दिए,
है आज चमकता उत्तर में,
ध्रुवतारा उसका नाम दिए,
सुख, ऐश्वर्य, भोग उत्तम, ध्रुवलोक दिया वरदान रे,
पाँच साल का बालक ध्रुव,गाता श्रीहरि का गान रे।
“ૐ नमो भगवते वासुदेवाय”
“ૐ नमो भगवते वासुदेवाय”

!!! मधुसूदन !!!

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