MAZDOOR/मजदूर
मजदूरों की ख्वाब,दशा,कैसी हालात सुनाएँ रे,कदम वहाँ चल देते उनकी रोटी जहाँ बुलाये रे |२तपती भट्ठी बदन गलाते,दो रोटी फिर मुँख में आते,अगर मिला मजदूरी निसदिनखुद-किश्मत वे खुद को पाते,मगर आज उस रोटी पर भीदेखो कैसी शामत आई,सुविधाओं का शोर बहुत,क्या साधन उनके दर तक आई?दिनकर उगता,चाँद निकलता,तम नागिन बन पल,पल डँसता,विवश छलकते आँसूं दर्द […]
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