DAHEJ/दहेज
तड़प तड़प लिख दिया है माँ को अपनी पाती,
दर्द दिया ऐसा कि बोल नही पाती।2
रंग भरूँ मजहबी या जातियों का सार दूँ,
या दहेज दानवी तलाक का हिसाब दूँ,
या मैं कहूँ दैत्य खड़े किस जगह कहाँ-कहाँ,
अस्मतों से खेलते हैं बेटियाँ जहाँ-जहाँ,
जख्म भरे अंग-अंग,अंग है दिखाती,
दर्द दिया ऐसा कि बोल नही पाती।
फूल सी परी थी एक वो कथा सुना रहे,
यूँ समझ कई परी की ये व्यथा सुना रहे,
खिलखिलाती वो कली थी अपने बागवान की,
अप्सरा सी रूपवती और ज्ञानवान थी,
ब्याह भी किया पिता ने बड़े धूमधाम से,
भर दिया मकान खेत बेचकर सामान से,
फिर भी पापियों का दिल नही भरा दहेज से,
एक दिन भी जी सकी ना बेटी बिन क्लेश के,
कुहुँक-कुहुँक रो रही थी घर में दिन-रात्रि,
दर्द दिया ऐसा कि बोल नही पाती।2
कह न सकी माँ को दर्द,थी कई बीमारियाँ,
देख जी सकेगी कैसे जख्म की निशानियाँ,
ख्वाब जो पले थे जले,आग में दहेज के,
मिल गए थे दैत्य सभी मानवों के भेष में,
अंग-अंग दागदार हो गई थी फूल की,
नित्य वे चुभा रहे थे व्यंग वाण शूल सी,
जख्म से भरे थे अंग फिर भी दिल नही भरा,
सोच में पड़े थे कैसी और दूँ इसे सजा,
आग में जली थी फ़टी पढ़ के माँ की छाती,
दर्द दिया ऐसा कि बोल नही पाती,
दर्द दिया ऐसा कि बोल नही पाती।2
!!!मधुसूदन!!!
Such an amazing display of truth through your mesmerizing words
Bahut bahut dhanyawad apka sarahne ke liye.
My absolute pleasure