Dharm aur Insaan
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योगी के भेष में भोगी,
धर्मांध मानसिक रोगी,
जब नीचता और आतंकवादी की,
भाषा बोलता है,
इंसानों को धर्म की तराजू पर तौल,
किस्मत की कुंडी खोलता है,
फिर वह इंसान प्रिय क्यों और उसका धर्म कैसा?
सदियों से दुनियाँ में,
जंग होते आई है,
सियासत और सम्राज्य विस्तार भी,
दुनियाँ देखते आई है,
परंतु,
जब धर्म के नाम कोई,
सम्राज्य का विस्तार करता,
अपनी कदमों के नीचे इंसानों को,
बेरहमी से रौंदता,
भूल जाता मानवता की,
सारी परिभाषाएं,
जिस्म का प्यासा,धर्मांध की पहचान,
लाल खंजर ही बोलता,
फिर वह इंसान प्रिय क्यों और उसका धर्म कैसा?
धर्म और धर्मावलम्बी अनगिनत,
इस दुनियाँ में,
सिर झुकाकर सबको हम,
प्रणाम किया करते हैं,
बसुधैव कुटुम्बकम का सदियों से हम,
गुणगान किया करते हैं,
आज भी कई हैं जो,
इस देश की नागरिकता पाते हैं,
कभी हम उनके बीच,
जाति और मजहब नही लाते हैं,
दर्द हमे भी होता उनपर जो,
जान बचाकर मेरे देश आते है,
दर्द तो उनका भी है जो विस्थापित बन,
अपने ही देश मे आंसू बहाते हैं,
परंतु,
खेद है उन्हें बसाने के लिए,
कभी इतना शोर नही देखा,
अपने ही भाई थे पर,
इतना अपनापन का जोर नहीं देखा,
शायद उस मजहब ने,
जुबान बंद कर दी होगी,
जिसने आज शोर मचाने की,
आजादी दी होगी,
काश यही शोर पंडितों पर मचाये होते,
धर्म को इंसानों के बीच ना लाये होते,
तो आज कश्मीर में अमन होता,
पंडितों का भी अपना चमन होता,
ऐसे में अब हम नहीं आप ही बताएँ,
जो धर्म के नाम पर इंसान में फर्क दिखाए,
फिर वह इंसान प्रिय क्यों और उसका धर्म कैसा?
!!! मधुसूदन !!!
काश यही शोर पंडितों पर मचाये होते,
धर्म को इंसानों के बीच ना लाये होते,
तो आज कश्मीर में अमन होता,
पंडितों का भी अपना चमन होता,
बिल्कुल सही कहा सर आपने वाह बहुत ही अच्छा
👌👌👌👌👌👌👌
Sukriya Devangan ji………
शब्द कम है भाव अथाह…..बहुत खूब👌👌
Sukriya apne pasand kiya aur saraha….