मैं धरती तुम गगन हमारे,
सूरज,चंदा,चमन हमारे,
काया मेरी जान तुम्ही हो,
धड़कन मेरे प्राण तुम्ही हो,
बेशक नयन हमारे उनमे बस तेरे ही रूप रे पगले,
भरी दुपहरी ढूँढ रहा क्यों,इधर-उधर तुम धूप रे पगले।
मैं राही तुम सफर हमारे,
मंजिल तुम हमसफ़र हमारे,
तुम ही मेरे काशी,काबा,
तुम चितचोर मेरे,मैं राधा,
तुम ही हो प्रारब्ध,मुकद्दर और मैं तेरी हूर रे पगले,
भरी दुपहरी ढूँढ रहा क्यों,इधर-उधर तुम धूप रे पगले।
तरुवर तुम और मैं परछाई,
कैसे तुमको समझ ना आई,
अधर लरजते,नजरें आकुल,
कुछ सुनने को कर्ण व्याकुल,
कह दे जो कहने आते अब मतकर कोई चूक रे पगले,
भरी दुपहरी ढूँढ रहा क्यों,इधर-उधर तुम धूप रे पगले।
अगर गई फिर ना आऊँगी,
तुम बिन जिंदा मर जाऊँगी,
क्या तुम मुझ बिन रह पाओगे,
रुखसत मुझको कर पाओगे,
बोल खड़े क्यों मूक सुना दे,उठती
दिल में हूक रे पगले,
भरी दुपहरी ढूँढ रहा क्यों,इधर-उधर तुम धूप रे पगले।
उहापोह,असमंजस,दुविधा
मंजिल दूर हटाते हैं,
कितने अरमानों की दुनियाँ
रोज यहाँ लूट जाते हैं,
तोड़ झिझक छोड़ो शरमाना,
सुन धड़कन का मधुर तराना,
उड़ने को मैं व्यग्र धूल सी बन उड़ संग मरुत रे पगले,
भरी दुपहरी ढूँढ रहा क्यों,इधर-उधर तुम धूप रे पगले।
भरी दुपहरी ढूँढ रहा क्यों,इधर-उधर तुम धूप रे पगले।
!!!मधुसूदन!!!

Rupali says
Badi pyari rachna hai.
Madhusudan Singh says
Sarahneey ke liye bahut bahut dhanyawad.
(Mrs.)Tara Pant says
मन भावन सुंदर कविता।।
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका पसन्द करने के लिए।
(Mrs.)Tara Pant says
🎉👍
Deeksha Pathak says
Bahut sundar kavita!!
Madhusudan Singh says
सराहने के लिए धन्यवाद आपका।🙏
Era says
खूबसूरत रचना 👌
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Era says
😊😊
Yogesh D says
क्या बात है सर, बहुत ही ख़ूबसूरत रचना👌👌👌😊🌻
Madhusudan Singh says
भाई। ये कविता डॉक्टर निमिष की देन है। धन्यवाद पसन्द करने और सराहने के लिए।
surinder kaur says
Wow
What a dilemma!
Just amazing
Madhusudan Singh says
Thank you very much for your valuable comments.
extinct0703 says
बेहद खूबसूरत 👌👌👌
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद सराहने के लिए।
Nimish says
बहुत सुंदर बन गई यह तो ….मन भाती कविता …चितचोर 😁🌼❤
प्रेम
दबे पाँव
चला करता है
जाड़े का सूरज जैसे
कुहरे में
छिप कर
आता है।
~ त्रिलोचन
Madhusudan Singh says
हाँ भाई। व्यस्तता के कारण लेखनी मायुश हो गई है। चितचोर असमंजस में चला गया है।😁
वैसे आपकी इन पंक्तियों का जवाब नही।
Nimish says
हम भी धान लगवा रहे🌼😁 प्रणाम
Madhusudan Singh says
इसे दुर्दशा कहें या उत्थान,
इंजीनियर मजदूर बने
और
डॉक्टर बने किसान।
Nimish says
हम अपनी जड़ें न भूले🌼😊
उत्थान❤
Madhusudan Singh says
पसीने और खून जब खेतों में बहते हैं,
तब जाकर पौध लहलाते
और अनाज पकते हैं,
एक एक अनाज
के बदले कई अरमान सजाते
खुद भूखे रह
बच्चों को पढ़ने को भेजते,
हम तो कभी उस जड़ को
भूल नही पाएंगे
आखिर उसी में खेले
पले बढ़े,
पंख लगे
मगर अगर बच गए तो,
आज का दिन भी भुला नही पाएंगे,
भुला नही पाएंगे।
Nimish says
कविता को पढ़कर तेरी ,
सहसा ठहर सा गया हूँ मैं
अनुभूति होती
इन शब्दों से , इन भावों से
हैं गहरा नाता मेरा
देखना चाहूंगा तुमको मैं इक दिन
की भला कैसे तेरा दर्द भी हो सकता है मेरे जैसा
की भला तू भी उस जड़ से आया जिससे मैं आया❤🌼
Madhusudan Singh says
अरे वाह। क्या बात।👌👌
लेखनालय says
अद्भुत सृजन सर🙏 एक जगह थोड़ा सा लय भंग हो रहा है। 🙏
क्या तुम* मुझ बिन रह पाएगा,
रुखसत मुझको कर पायेगा,
Madhusudan Singh says
पहले तो बहुत बहुत धन्यवाद सराहने के लिए। दूजे, सलाह के साथ साथ अगर लय जोड़ पाते तो और खुशी होती।
लेखनालय says
समीक्षा के लिए माफ़ी चाहूंगा सर मुझे लगा कहीं आपसे टंकण त्रुटि न हो गयी हो।
मुझे जो लाइन उपयोगी लग रही है लयबद्ध होने हेतु मैं जोड़ना चाहूंगा। धन्यवाद
क्या तुम मुझ बिन रह पाओगे,
रुखसत मुझको कर पाओगे।
Madhusudan Singh says
हाँ ये उससे बढ़िया है। धन्यवाद आपका।
लेखनालय says
🙏🙏
AnuRag says
Woooow…… शानदार रचना 👌 हर इक पंक्तियां दिल को छूने वाली है ।
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका पसन्द करने के लिए।
AnuRag says
स्वागतम् 🙏🙏