Diwali

दीप जला हम ख़ुशी मनाते,
दीपक के संग हम मुस्काते,
एक साल की पड़ी गन्दगी,
को घर से हम दूर भगाते।

साफ़ किया घर मिहनत से,
क्या मन से गंध मिटाए हम,
जब भी सोंच गयी इस पर,
तब घोर अन्धेरा पाए हम।

रौशन तो कर दिया जमाना,
अन्धकार भागा है,
मन के अंदर देख अन्धेरा,
अट्टहास करता है।

मेरे राम बसे मन-मंदिर,
धन्वंतरि,घनश्याम बसे,
माँ लक्ष्मी की मूरत मन में,
पर उनको ना देख सके,

आ मन-मंदिर हम चमकाएं,
ज्योति प्रेम की वहां जलाएं,
वर्षों से है घना अन्धेरा,
आ उसको अब दूर भगाएं,
दीप जलाएँ दीप जलाएँ,
आ मन-मंदिर हम चमकाएं।
!!!मधुसूदन!!!

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