Dustak

बिखर कर भी प्रेम बिखर नहीं पाता है,
संवर कर भी स्वार्थ संवर नहीं पाता है,
खुशबु बिखेरे मिटकर फूल दुनिया में,
कांटे फूल पाकर भी महक नहीं पाता है,
बिखर कर भी प्रेम बिखर नहीं पाता है।

जिंदगी तो दौड़ है स्वार्थ और प्रेम का,
रिसते हैं आँखों से अश्क स्वार्थ-प्रेम का,
सिलवटें निशान कोई हंसकर मिटाता है,
उन्हीं यादों को कोई दुनिया बनाता है,
संवरकर भी स्वार्थ मुशाफिर रह जाता है,
बिखर कर भी प्रेम बिखर नहीं पाता है|

गलतियां हजार मगर प्रेम ढूंढ लेता है,
कोयले की खान से हीरे चुन लेता है,
खूबियां हजार स्वार्थ खामी ढूढ़ लेता है,
दूर हो जाने को निशानी ढूंढ लेता है,
फिर ओ स्वार्थ कभी चैन नहीं पाता है,
बिखर कर भी प्रेम बिखर नहीं पाता है|

दिल का दरवाजा हम खुला छोड़ बैठे थे,
भूल एक हसीन यही हम कर बैठे थे,
होश थे गवाए हम दस्तक से हारकर,
दुनिया को छोड़ उसे अपना बना बैठे थे,
कल वाली दुनिया ना वो सक्श मेरे पास है,
दरवाजे पर फिर भी उसी का इंतज़ार है,
धोखेबाज स्वार्थी है जानता है दिल फिर भी,
बेशुमार प्रेम उसे आज भी बुलाता है,
बिखर कर भी प्रेम बिखर नहीं पाता है|

 

!!! Madhusudan !!!

23 Comments

Your Feedback