Guru Bhakt Aruni

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एक आज्ञाकारी शिष्य,
जिसके गुरु थे मुरीद,
उसी गुरु-शिष्य की कथा सुनाऊँ,
आरुणि की गुरुभक्ति आज गाउँ।

ऋषि एक आयोदधम्य,
जिसके शिष्य थे असंख्य,
शिष्य आरुणि का नाम खूब छाया,
गुरुआज्ञा को क्या खूब था निभाया,
एक दिन की है बात,
हुयी घोर बरसात,
बाल शिष्य आरुणि था,
चला आज्ञा शिरोधार्य,
संग फावड़े के खेत में था आया,
आंधी-पानी भी उसे नहीं डिगाया,

धान खेत में लगी थी,
मेढ़ पानी में बही थी,
लाख किया वह प्रयत्न,
फिर भी मेढ़ ना बंधी थी,
लेट खुद जल खेत में बचाया,
पूरी रात वह खेत में बिताया,
प्रातः शिष्य सभी देख,
शिष्य आरुणि न देख,
ऋषि पूछे शिष्य हाल सब बताया,
शाम खेत से वो लौट नहीं आया,

सुन ऋषि अकुलाए,
सभी धान खेत धाए,
पुत्र आरुणि का नाम था पुकारा,
शिष्य आरुणि आवाज नहीं आया,
तभी देखा गुरुभक्त,
मिट्टी में था लतपथ,
मेढ़ बन खुद जल था बचाया,
ठंढ से वो मुख खोल नहीं पाया,

ऋषि सीने से लगाये,
अश्रु रोक नहीं पाये,
गुरु-शिष्य की मिलन,
कैसी कैसे हम बताएं,
ऐसे शिष्य पर शीश को झुकाऊं,
गुरुभक्ति आरुणि की मैं सुनाऊँ।
गुरुभक्ति एक शिष्य की सुनाऊँ।।

!!! मधुसूदन !!!

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