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कई गुरु थे महान,
शिष्य भी कई महान,
गुरुभक्ति एक शिष्य की दिखाऊं,
आज गुरु-शिष्य कथा मैं सुनाऊँ।
एक गुरु थे महान,
था द्रोण जिनका नाम,
एकलब्य का अंगूठा लिया,
काट जिससे दान,
नाम खुद का था जग में हंसाया,
शिष्य अर्जुन का नाम था बढ़ाया,
धन्य था वो एकलब्य,
खुद का ही किया वद्ध,
शीश ऐसे शिष्य पर मैं झुकाऊं,
गुरुभक्ति एक शिष्य की सुनाऊँ।
गुरु नाम था कौटिल्य,
चन्द्रगुप्त जिनके शिष्य,
चंदू को कौटिल्य मिट्टी से उठाया,
दिया ज्ञान फिर तख्त पर बिठाया,
धन्य गुरु वो महान,
था चाणक्य उनका नाम,
ऐसे गुरु को भी शीश मैं झुकाऊँ,
आज गुरु-शिष्य कथा मैं सुनाऊँ।
लगा ज्ञान का बाजार,
आज शिष्य खरीददार,
गुरु ज्ञान को बाजार में चढ़ाया,
गुरु-शिष्य दोनों प्रेम को भुलाया,
कई राम और रहीम,
कई बने आसाराम,
बना पथभ्रष्ट खुद को,
बताता है महान,
ऐसे गुरु आज मान को घटाया,
कई गुरुओं के नाम को हँसाया,
गुरु आज भी कई,
शिष्य को है जिनपर नाज,
शिष्य भी कई हैं ऐसे,
करते गुरु जिनपर नाज,
आजा गुरु-शिष्य प्रीत को बढाऊँ,
आज गुरु-शिष्य कथा मैं सुनाऊँ।
!!! मधुसूदन !!!
रजनी की रचनायें says
बहुत ही अच्छा लिखा है। गुरु शिष्य की कहानी और कविता की शिक्षा के लिए सही गुरु का चुनाव करने के लिए आवश्यक है। बहुत खूब। 👍👌👏
Madhusudan says
dhanyawad apne pasand kiya aur saraha.
myexpressionofthoughtsblog says
Beautiful and well described the teacher student relationship!!
Madhusudan says
Thank you Tanvir ji….
myexpressionofthoughtsblog says
Welcome 😊
Nageshwar singh says
बहुत सुंदर ब्याख्या
Madhusudan says
Sukriya apka….
रंगबिरंगे विचार(विमला की कलम) says
बहुत अच्छा कविता के रूप मे बताया है पहले के गुरू का व आज के….बहुत सुंदर
Madhusudan says
Dhanyawad apka…..prashansa karne ke liye…..
✍पवन 💓💕 says
बहुत ही सुंदर
Madhusudan says
Dhanyawad apkaa…
Raj says
Ek din pahle post karte to
Main isse apne tution main sunaata,
Lekin der ho gai
Madhusudan says
Kyaa kare der se dimag me shabd aaye……chahkar kuchh likha nahi jaa sakta.