HAHAKAAR

क्यों  बैठे  हो  मन को  मार, नई नही  ये  हाहाकर,
सदियों से देखी धरती माँ,अनगिनत ही अत्याचार।

खून की नदियाँ बहुत बही है,
ऋषियों की इस धरती पर,
एक से बढ़कर एक दुष्ट,
पहले भी आये धरती पर,
सत्य ढका कुछ पल को फिर,
दुष्टों में मच गई चीख पुकार,
क्यों बैठे हो मन को मार,नई नही ये हाहाकर।

फिर एक दौर नया ये आया,
असुरों ने नव रूप बनाया,
यज्ञ बिधवंसक रूप पूर्व का,
वही रूप इस युग मे छाया,
पुरखो की पहचान मिटाते,
अपनी ताकत हमे दिखाते,
संख्या बल हमको दिखलाकर,
ग्रंथों में ये आग लगाते,
दुष्ट ना बदले कल और आज,
अत्याचार ही इनकी धार,
सदियों से देखी धरती माँ,नई नही ये हाहाकर।

माना एकरँगा नभ होगा,
दुष्टों का ये धरती होगा,
चलै दशानन कापै धरती,
माना वैसा ही जग होगा,
फिर आएंगे राम धरा पर,
अम्बे,काली,शिव धरा पर,
तबतक धैर्य बचाना होगा,
साहस मन मे लाना होगा,
अश्क नहीं यूँ ब्यर्थ बहाएँ
आओ मिल अब जश्न मनाएँ,
दुष्ट मुक्त होगा संसार,
नई नही ये हाहाकर,
सदियों से देखी धरती माँ,अनगिनत ही अत्याचार।

!!! मधुसूदन !!!

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