Jindagi

गुड्डा ​मैं एक घरौंदे का,
जिसकी तु प्यारी गुड़िया है,
यादों में मेरी तू बसती,
तुममे ही मेरी दुनियाँ है,
तू रूठ गयी रब रूठ गया,
था बना घरौंदा टूट गया,
ये मान सका ना पागल दिल,
सपनों का सागर सूख गया,
कहते हैं सब मैं पागल हूँ,
सब कहते तू अब नहीं रही,
उस बाढ़ में कोई नही बचा,
सब कहते तुम भी बची नहीं,
तू मिश्री दूध सा मेरा मन,
घुलकर तूुुम अलग हुई कैसे,
हर ईंट में खुशबू है तेेरी,
यादों को भूलूँ मैं कैसे,
मैं आज भी उसी घरौंदे की
हर ईंट को रोज सजाता हूँ,
तुम आएगी वापस एक दिन,
मैं स्वप्न का महल बनाता हूँ।
कल ही तो ख्वाब सजाये थे,
एक रात में कैसे बिखर गया,
कितनी छोटी सी दुनियाँ थी,
बिन तेरे और भी सिमट गया,
हाँ, हाँ सच मे मैं पागल हूँ,
अब भी मैं ख्वाब सजाता हूँ,
तुम आएगी वापस एक दिन,
हर ईंट को रोज सजाता हूँ,
हर ईंट को रोज सजाता हूँ।

!!! मधुसूदन !!!

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