JNU/जे.एन.यू

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शिक्षा का मंदिर दंगल मैदान बना है जेएनयू,

सत्ता हथियाने का बस हथियार बना है जेएनयू।

काश यहाँ हम भी पढ़ पाते,

लाखों सपने नित्य सजाते,

मगर योग्यता जिनकी होती,

वे ही इस मंदिर में जाते,

निर्धन और धनवान यहाँ पर,

निर्बल और बलवान यहाँ पर,

शहरी,ग्रामीण हर तबकों के

लाखों सपने,ख्वाब यहाँ पर,

जहाँ प्रतिभावान जनमते,

भारतवर्ष का गौरव बनते,

आज वही भू राजनीति का ग्रास बना है जेएनयू,

सत्ता हथियाने का बस हथियार बना है जेएनयू।

योग्य कभी रावण भी था,

वेदों को संगीतबद्ध किया,

देख विद्वता रावण का,

देवों ने उसपर गर्व किया,

मगर सोच रावण ने बदला,

याद करो कैसा जग दहला,

आज वही फिर सोच तले,बर्बाद हुआ है जेएनयू,

सत्ता हथियाने का बस हथियार हुआ है जेएनयू।

कल और अब में बदला क्या,

ये याद करा कर क्या होगा,

मुर्दों को जो साथ मेरे,

इतिहास बताकर क्या होगा,

तक्षशिला आवाज लगाती,

हम बधिरों को दर्द सुनाती,

विक्रमशिला,नालंदा,

जेएनयू अब है अश्क बहाती,

मगर बने हम अँधे,गुंडाराज बना है जेएनयू,

सत्ता हथियाने का बस हथियार बना है जेएनयू।

कहने को बस देश हमारा

और भारत की धरती अब,

इसे कई टुकड़े करने की,

ख्वाब यहाँ नित पलते अब,

हर पल नारे आजादी के,

वतन तोड़ने,बर्बादी के,

अजब-गजब नारों का अब बाजार बना है जेएनयू,

सत्ता हथियाने का बस हथियार बना है जेएनयू।

समझ नही पाते हैं बेबस

हम हैं या बेबस सरकार,

या षड्यंत्र कोई है गहरा,

या मूर्खों की है दरबार,

दो गुटों में छात्र बंटे हैं,

सत्ता का हथियार बने हैं

मृत विपक्षी का अमृत बन

खड्ग स्वयं ही ढाल बने हैं,

बढ़ गए आज अचानक ज्ञानी,

सहनशील बन हिंसक प्राणी,

छात्रों को हथियार बनाकर,

स्वार्थ साधने की सब ठानी,

पहन मुखौटे गुंडे लड़ते,

लाठी डंडे नित्य बरसते,

दो गुटों के बीच जंग मैदान बना है जेएनयू,

सत्ता हथियाने का बस हथियार बना है जेएनयू।

!!!मधुसूदन!!!

31 Comments

  • मस्त मक्खन मार के लिखो हो दा …गरदा उड़ा दिए हो 😍😍❤🌻🙂

    • हा हा।।गर्दा तो वे लोग उड़ा रहे हैं जिन्हें संजीवनी मिल गई है JNU की। सबके मुँह काले होंगे एकदिन।

    • खुशी होती है जब सच्चे दिल से तारीफ मिलती है। कोशिश होती है सत्य लिखूं चाहे क्यों न किसी को बुरा लगे। क्योंकि सबको खुश करने में सत्य धूमिल होने लगता है।
      आपने पसन्द किया बहुत बहुत धन्यवाद।

  • अखाड़ा बना शिक्षा का मंदिर,,
    भेदभाव का शिकार है
    राजनीति है या साजिश,,
    छात्र ही लगता है हथियार है
    ” सटीक रचना,, शुभ रात्रि भाई साहब 🙏

    • बहुत ही खूबसूरत विचार हमारे विचारों से मिलता हुआ। शुप्रभात भाई जी।🙏🙏

    • देश मे चल रहे उथल पुथल मुद्दों की बाढ़ सी आ गयी है के बीच जेएनयू अहम रोल निभा रहा है या यूं कहें तो पूरे देश सिर्फ जेएनयू सरीखे चंद शिक्षाकेंद्र ही संकट में नजर आ रहा है। आखिर क्यों?
      धन्यवाद आपका पसन्द करने और सराहने के लिए।

  • कारण चाहे जो भी हो वास्तविकता यही है कि देश का भविष्य खतरे में है …..!

    • धन्यवाद आपका अपना विचार साझा करने के लिए।
      वैसे मेरे समझ से देश मजबूत स्थिति में है पहले के वनिस्पत इंसान खतरे में है। क्योंकि इंसानियत पर धर्मांधता हावी हो गया है।
      एक होड़ सी मची है खुद को सुरक्षित करने की।

      • कान पक गए CAA NRC JNU सुन सुन कर

        अब जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू कर के नया मुद्दा दो विरोधिओं को
        Modi जी 😂

        • मृत पड़े विपक्षी सोच नही पाएँगे कि
          छोड़ें किसको कर पकड़े किसको। इतने मुद्दे मिलेंगे।😀😁

      • पिछले कुछ समय से ऐसा ही प्रतीत हो रहा था कि इंसानियत पर धर्मांधता हावी हो गई है परंतु CAAऔर NRC के आने से पता चला कि इंसानियत केवल उन्हीं लोगों की खतरे में है जो कुर्सी के लिए इंसानियत का इस्तेमाल कर रहे थे ! मेरे विचार से तो झूठी धर्मांधता का पर्दा लोगों की आंखों से हट गया है , देश बिल्कुल मजबूत स्थिति में खड़ा है ! यहां मुद्दा धार्मिक सुरक्षा का नहीं अपितु संवैधानिक सुरक्षा का है !

        • पुनः धन्यवाद आपका। आपके विचार पढ़ने और मनन करने लायक होते हैं । हमारे समझ से सरकार कोई भी आए जाए मगर संवैधानिक खतरा भी नजर नही आता।
          परिवर्तन संसार का नियम है इसे मानना ही होगा। मगर हर बार परिवर्तन होने पर इंसान ही पिसता है। जातियाँ बदली,धर्म कई जन्म लिए सरहदें बने बिगड़े, और बनेंगे जो शेष बचेगा अपने हिसाब से दुनियाँ बनाएगा।
          कमल में गुलाब नही खिलते मगर
          धर्म से दूसरे धर्म को जनमते देखा है,
          संविधान बना न जाने कितने बार इसे अपने हिसाब से लोगों ने बदला,
          और आगे भी बदलते रहेगा।
          इसे कोई खतरा नही।खतरा सिर्फ इंसानियत का है।

          • धन्यवाद मधुसूदन जी !वैचारिक भिन्नता अकाट्य सत्य है ! मेरे अनुसार कुर्सी का खेल जहां से समाप्त होता है इंसानियत को खतरा वहीं से आरंभ होता है ! इंसानियत कम ज्यादा हो सकती है परंतु कभी समाप्त नहीं हो सकती , संवैधानिक संशोधन भी होते रहे हैं और होते रहेंगे परंतु संविधान के मूलभूत ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता इस प्रकार हमारे पास दो ही विकल्प रह जाते हैं या तो हम संविधान को ज्यों का त्यों आत्मसात कर लें अन्यथा संविधान मैं परिवर्तन कर भारत को एक हिंदू राष्ट्र घोषित कर दें! अब जबकि समस्त संसार लोकतंत्र के मार्ग पर चल पड़ा है तो ऐसे में धर्म आधारित राष्ट्र कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या स्थिति होगी यह एक विचारणीय विषय है ! उदार अभिव्यक्ति और कठोर कायदे कानून एक साथ नहीं चल सकते , और मेरे विचार से इंसानियत का स्थान धर्म से ऊपर है और यदि ऐसा ना होता तो हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सब एकजुट होकर सरकार के विपक्ष में ना खड़े होते !

          • यहाँ पर हमारे विचार आपके विचार से मेल नहीं खाते।
            एक कठोर सत्य जिसे आप भी जानते हैं फिर भी आईए हम सुनाते हैं। अगर गलत होगा तो जरूर बताईये,सुधार के दरवाजे खुले हैं—-
            तक्षशिला जहां चाणक्य की यादें चन्द्रगुप्त की शिक्षास्थली जहाँ से आज भी मेरा प्रेम जिसे आपने हमें काफ़िर बोल साथ ना रहने की बात कह खुद के लिए हम से छीन लिया। हम आज भी इस देश को उसके वगैर अधूरा मानते हैं मगर आपको कोई परवाह नहीं। कल आप के साथ साथ कई धर्मावलम्बी यहाँ रहते थे और राजे रजवाड़े भी । सभी अलग साम्राज्य चाहते थे मगर एक राष्ट्र के लिए, इस हिन्दुस्तान के लिए सबने अपनी स्वार्थ की कुर्बानियां दे दी। मगर आपने अपने स्वार्थ को चरमोत्कर्ष पर रखा। किसी की एक ना सुनी और भारत को तोड़ पृथक पाकिस्तान बना दिया। आप तब जश्न में डुबे रहे और हम आजाद होकर भी गम में। मगर हमने तब भी जब संविधान नही था आपको आपका साम्राज्य देने के बाद भी आपको साथ रहने को कहा। और साथ ये भी कहा गया कि वहां के हिन्दू जब भी अपने आप को वहां असुरक्षित महशुस करें भारत आ सकते हैं तथा ये तथ्य संविधान में अंकित भी है। हमने आपके कथनानुसार आपके जिद्द के आगे विवश होकर इस देश को धर्म आधारित बांटकर भी सहनशीलता दिखाई और इस देश को धर्मनिरपेक्ष बनाया और आपने मुस्लिम राष्ट्र। मगर आपको इस बात की भी परवाह नहीं |
            आज आपकी सहनशीलता कहाँ चली गई जब वहां के सताए गैर मुस्लिमों को संविधान के तहत ही शरण देने की बात कही जा रही है। ये देश आज भी उदारता दिखाते हुए हिन्दू के अलावा अन्य धर्मावलम्बियों को भी लाने की बात कर रहा है। मगर जिसने धर्म के नाम पर अलग मुल्क मांगा उसे आने से रोकना संविधान को कैसे तोड़ता हो गया? आज वे उसी काफ़िर संग कैसे रहने की बात करते हैं। ये उनकी साथ रहने की नही बल्कि पुनः इस देश को तोड़ने की साजिश उन्हें इस देश मे घुसपैठ कराई है। इस बात को सोचना होगा।
            उनकी सोच भारत बेशक टूट जाए मगर इस्लाम और इस्लामिक राष्ट्र बनाने से है और हमारी सोच हिन्दू बेशक मिट जाए मगर भारत बचना चाहिए है का है।
            एक कड़वा सत्य ये भी है जब हम क्लास 8-9 में थे, भारत पाकिस्तान नही जानते थे, हिन्दू मुसलमान नही समझते थे तब भी किसी वयस्क को गावस्कर के आउट होने पर तालियां बजाते और इमरान के चौके पर जश्न मनाते अपनी आंखों से देखा है। मगर तब कारण नही समझ सके,आज सब समझते हैं।मगर फिर भी चुप है मगर आपको इसकी भी परवाह नहीं |
            दोस्त! हमारा आप पर कोई शक नही मगर ऐसे लोग अब भी यहां रहते हैं।
            और जहाँ तक भीड़ का सवाल है तो, मित्र ! भीड़,विरोध और उसके अंदर का सत्य कभी कभी दिखाई देकर भी दिखाई नही देता। शायद धर्मांधता ये भी है। हो सकता है सत्य हमें भी नही दिखाई दे रहा हो।
            आज भी सभी जाति धर्मों के हमारे मित्र हैं और हम सबकी मंगल कामना करते हैं।जहाँ किसी एक धर्म के बगैर इस देश की कल्पना करना बेमानी है आप तो बहुसंख्यक अल्पसंख्यक है। आपके बगैर ये देश फिर एक पाकिस्तान देगा जिसकी सोच लिए कई लोग यहाँ बैठे हैं मगर हम हिन्दू मिट जाएंगे मगर इस देश को टूटते नही देख सकते। फिर आप ही बताईये हमसे संविधान कैसे खतरे में है?
            मेरी समझ तो इतना ही है।हमने कोई धर्मस्थल नही तोड़े मगर आज भी मेरे धर्मस्थल तोड़े जा रहे हैं।
            गाय की हत्या संविधान में वर्जित है मगर गाय की हत्या लगातार की जा रही है। क्या ये संविधान को तोड़ना नही?
            हम जहाँ रहते हैं कई मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर मुसलमानों की बात खुल्लम खुल्ला की जाती है जिसे नित्य अपनी कानो से सुनते हैं। दुख होता है हमने ऐसा कभी नही किया। मगर हम सत्य कहें तो हमें कट्टर हिन्दू की संज्ञा दी जाती है। हाँ हम हिन्दू हैं, गर्व है खुद को हिन्दू कहने पर और अन्य धर्मो पर भी मगर हम कटटर नहीं तथा हम राजनीतिज्ञ भी नही जिसे वोट बिखरने का डर सता रहा हो जिसके कारण सत्य ना बोलें|
            समझ में नही आता
            हमें किसी से वैर नही मगर हमसे इतनी वैर क्यों?
            हम धर्मपरिवर्तन के नाम पर जुल्म नही करते मगर हमपर जुल्म क्यों?
            हम जाएं तो जाएं कहाँ?
            उन देशों में जी नही सकते काफ़िर बनकर और अपने देश में आने पर संविधान को खतरा है।
            फिर आप ही बताईये,
            किसे खतरा है, संविधान को या हमको?
            सच कहा आपने,
            उदार अभिव्यक्ति और कठोर कायदे कानून एक साथ नहीं चल सकते। मगर देश हित में कठोर कदम उठाने पड़ते हैं और राजा को उदार ही रहना चाहिए|

  • भाईजी ईस संघर्ष से लोगों को क्या लेना। चंद राजनैतिक दलों के सत्ता स्वार्थ के लिए यह नॉनसेन्स चलाया गया है। पूरे भारत में सिर्फ यही एक यूनिवर्सिटी में ही दंगा क्यों होता है? यही प्रश्न है।

    • बिल्कुल भाई साहब। यही तो मेरा भी कहना है। जिसे देखो यहां नेता बना है और सहानुभूति दिखानेवालों की बाढ़ सी आ गई है।
      बिना सिर पैर की बात।
      बेमतलब हाहाकार।

      • हालत यह है कि हैं तो बुद्धिजीवी, पर विलायत का एक चक्कर लगाने के लिए यह साबित करना पड़ जाय कि हम अपने बाप की औलाद नहीं हैं, तो साबित कर देंगे। चौराहे पर दस जूते मार लो, पर एक बार अमरीका भेज दो – ये हैं बुद्धिजीवी।
        #राग_दरबारी #श्रीलालशुक्ल

        • चाहे जितना भी प्रोपगैंडा फैलाओ,सत्य आखिर सत्य ही होता है।
          कान मेरे भी पक गए सुन सुनकर मगर सुनना होगा।

          धन्यवाद भाई जी पसन्द करने और सराहने के लिए।

    • उनको बता दीजिए कि प्रोपेगैंडा का जवाब है डण्डा। कह दीजिए कि यह शिवपालगंज है, ऊँचा-नीचा देखकर चलें।
      #राग_दरबारी #श्रीलालशुक्ल 🤓😂

      • हा हा हा।
        प्रोपगैंडा का जवाब डंडा,
        खा लेंगे क्योंकि बिजनेस था उनका मंदा।

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