Kuchh Kali Qaid Guldaste me

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पुष्प महकती इठलाती थी,
कभी शान से गुलशन में,
किश्मत पर है वही सिसकती,
आज कैद गुलदस्ते में,
कलि बनी कब फूल न जाना,
जा बैठी गुलदस्ते में,
इठलाना,बलखाना सारा,भूल गयी गुलदस्ते में।

खुशबु रखती पास महकती,
जहां,कहीं भी वो जाती,
अपने संग संग मरघट को भी,
गुलशन सा है महकाती,
मगर कद्र ना फूल का जग में,
सिसक रही गुलदस्ते में,
इठलाना,बलखाना सारा,भूल गयी गुलदस्ते में।

शादी,ब्याह,सभा,मातम हो,
महक एक सा रखती है,
जहाँ चढ़ाओ वही महकती,
अंतर नहीं समझती है,
मगर जश्न में दुनियाँवाले,
कैद किये गुलदस्ते में,
इठलाना,बलखाना सारा,भूल गयी गुलदस्ते में।

पुष्प के जैसे ही बेटी है,
कलि बाप की गुलशन की,
इठलाती,बलखाती,खिलती,
महक बढ़ाती गुलशन की,
कोमल मन पंखुड़ी पुष्प सी,
मगर जहाँ में प्यार कहाँ,
खिलते कुछ मुरझा जाते,
सब बेटी का एक भाग्य कहाँ,
रब क्यों ऐसा भाग्य बनाया,
मौन पड़ी गुलदस्ते में
इठलाना,बलखाना,बचपन भूल गयी गुलदस्ते में|

जान है माँ,बाबुल की बेटी,
शान है भैया की बहना,
चंचल,शोख,प्रेम की मूरत,
रब की प्यारी है रचना,
मगर बोझ बनती रश्मों की,
भेंट चढ़ी गुलदस्ते में,
कुछ कलियों की आज भी किश्मत,
सिसक रही गुलदस्ते में,
इठलाना,बलखाना,बचपन भूल गयी गुलदस्ते में|

!!! मधुसूदन !!!

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