KASHMIRI PANDIT/कश्मीरी पंडित

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तिनका तिनका जोड़ बनाया,महल नही हक मेरा जी

जो घर था मेरा अब उनका,मेरा रैन बसेरा जी।

नाम बताऊँ क्या मैं खुद का,

चेहरे नाम बता देंगे,

दर्द कहूँ क्या नयन हमारे,

सारे दर्द बता देंगे,

मैं कश्मीर का पंडित हूँ,कश्मीर नही हक मेरा जी,

जो घर था मेरा अब उनका,मेरा रैन बसेरा जी।

मैं बतलाऊँ जुल्म हुए क्या,

कोई आकर पूछ कभी,

मेरा भी था चमन उजड़ गए,

आ संग मेरे रुक कभी,

दोष हमारा हिन्दू होना,ऐब यही बस मेरा जी,

जो घर था मेरा अब उनका,मेरा रैन बसेरा जी।

अगल बगल कहने को अपने,

उनमें कुछ मुखविर बने,

घर से हमें निकाल मारनेवालों के

वे तीर बने,

कुछ अबोध बच्चे थे वे भी,देखा नही सवेरा जी,

जो घर था मेरा अब उनका,मेरा रैन बसेरा जी।

अरे मौन क्यों तख्त,सियासत,

खुशी ये ढलनेवाली सुन,

जो आँधी कश्मीर में आई

यहाँ भी आनेवाली सुन,

नींद तोड़,उठ जाग आग वह,आज यहाँ भी घेरा जी,

जो घर था मेरा अब उनका,मेरा रैन बसेरा जी।

!!!मधुसूदन!!!

36 Comments

  • आपकी पोस्ट बहुत अच्छी होती है।समय के अभाव में पढ़ नहीं पाती।

    • बहुत अच्छा लगा जानकर। बहुत बहुत धन्यवाद आपका।🙏

  • घटना तो अपने आप घटित होती है।ये साजिश थी। पूरी सोची समझी।गुनाह करने वालों को सजा भी नहीं हुई।कोई मानवाधिकार का एजेंट नहीं आया सामने।किसी ने सेक्युलर होने की दुहाई नहीं दी।किसी कन्हिया को खबर नहीं हुई।यहां तक कि कैंडल मार्च भी नहीं। J N U में भी कोई नारा नहीं लगा।घाटी में बहा खून संसद के गलियारे तक पहुंचने से पहले सूख गया।देखा है किसी देश में ऐसा।न्याय कहां है कोई बता दे।

    • आपके शब्द अंगार बन बरस रहे हैं। मगर दरिंदों को जिसे धर्मांधता के आगे तड़पते लोग नजर नही आते सिर्फ झूठे धर्मांध के। सच तब कोई आगे नही आया। आज भी लोग विस्थापित हैं और लोग मौन!

      • इंसान हॉस्टल में रहता है तो उस जगह की भी यादें दिल में रह जाती हैं।सोचिए जिन्होंने अपना घर छोड़ा उनकी क्या हालत होती होगी।

  • बेहद मार्मिक कविता है. मैं 1991 में जम्मू कुछ समय के लिए गई थी और विस्थापित कश्मीरी पंडितों की दर्दनाक स्थिति देखी थी.

    • जम तो तस्वीर देख दर्द को महशुश किए। समझ सकते हैं आपके दर्द को जब आप नजदीक से देखे होंगे। पता नही उन्हें अल्लाह कैसे मिल गए जिन्होंने अल्लाह के कृति को सिर्फ मजहब के नाम पर जलाकर राख कर दिया।

    • हम तो तस्वीर देख दर्द को महशुश किए। समझ सकते हैं आपके दर्द को जब आप नजदीक से देखे होंगे। पता नही उन्हें अल्लाह कैसे मिल गए जिन्होंने अल्लाह के कृति को सिर्फ मजहब के नाम पर जलाकर राख कर दिया।

  • काश उन लाखों पंडितो के साथ देश एक जुट खड़ा होता,लेकिन वही बात है,जाके पांव न फटे बवाई, ते क्या जाने पीर पराई……अनुपम कविता

    • दर्द है,टिस है और गुस्सा भी।
      वे अपनी नफरत नही छोड़ते और हम सहनशीलता।

  • दुर्भाग्य,,, है,,जी,,
    अपने ही घर से हुए पराये
    क्रुरता के सामने लौट कर
    ना आये,, संवेदना भरी वेदना का हृदयस्पर्शीय,, लेखनी 👌

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