Kismat/नसीब

क्यों इतरा रहे इतना दूर जाकर,
क्या पा लिया रिश्तों को भुलाकर,
हम तो दोनों ही पल,
जब मिले और छोड़ गए,
हाथों की,
उन लकीरो को देख रहे थे,
जिसे उस उपरवाले ने खिंच रखी हैं,
अगर मिटा सकते हो तो मिटा दो।

!!!मधुसदन!!!

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