KRISHNA/कृष्णा 7

DWARIKADHISH-friendship-story

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आज द्वारिकाधीश जश्न में आए मित्र सुदामा जी,

स्व आसन स्थान दिए सकुचाये मित्र सुदामा जी,

देख सखा की दीनदशा अक्षि-जलधि का द्वार बना,

हाथ परात लगाए नहीं अखियन से अश्रु धार बहा,

चरण पखारे अश्रुजल से विह्वल मित्र सुदामा जी,

आज द्वारिकाधीश जश्न में आए मित्र सुदामा जी।

सखा हेतु परिधान नये मंगवाये थे घनश्याम ने,

छतीस व्यंजन सजे थाल रख दी सहचर के सामने,

कौर उठाते ठिठक गए,नयनों से आँसूं छलक पड़े,

थे घर में भूखे बच्चे भोग ना भाए विप्र सुदामा जी,

आज द्वारिकाधीश जश्न में आए मित्र सुदामा जी।

कुशल पूछते घर का कृष्ण,सुदामा सुन घबरा बैठे,

स्वाभिमान में दर्द सभी अपने दिल में दफना बैठे,

घर में हैं सब कुशल सुनाते,बच्चे चंगे सब बतलाते,

झूठ बोल मुस्काते दर्द छुपाते विप्र सुदामा जी,

आज द्वारिकाधीश जश्न में आए मित्र सुदामा जी।

जहाँ हृदय की बात गूंजती,मित्र की है वो टोली,

जहाँ प्रेम की शहद टपकती,मित्र की ऐसी टोली,

मित्र वही जो स्वार्थ न जाने,स्वार्थ भला क्या मीत को जाने,

कौन सखा किस बात का साथी,अगर दर्द कहने पर जाने,

किए दूर दुःख दर्द समझ ना पाए तनिक सुदामा जी,

आज द्वारिकाधीश जश्न में आए मित्र सुदामा जी।

कुछ दिन संग रह विदा लिए पग,बढ़ते जाते राहों में,

कुछ ना माँगा प्रिये को क्या बोलेंगे सोचे राहों में,

वापस घर आकर घबराये,आँखों में थे अचरज छाए,

त्याग सखा का देख के विह्वल रोते मित्र सुदामा जी,

आज द्वारिकाधीश जश्न में आए मित्र सुदामा जी,

आज द्वारिकाधीश जश्न में आए मित्र सुदामा जी।

!!! मधुसूदन !!!

Cont… Part ..8

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