
भूख से व्यग्र एक कुतिया,
बार बार गलियों का चक्कर लगाती,
इंसानों को देख अपनी पूँछें हिलाती,
चेहरे के आव-भाव से भूखी होने का भाव दर्शाती
मगर कहीं से भी रोटी का एक टुकड़ा नही मिल पाने पर
वापस अपने बच्चों के पास आकर लेट जाती,
फिर टूट पड़ते नासमझ बच्चे उसपर
और नोचने लगते स्तन।
पेट में अन्न का दाना नही
और ना ही स्तन में दूध,
आखिर कैसे मिटाए
कोई भूखी माँ
अपने बच्चों की भूख!
अचानक बच्चे को झिटक भाग चली,
एक खुलते दरवाजे को देख मन में आस जगी,
मगर उसे क्या खबर बिन बादल बरसात हो जाएगी,
कुसूर कुछ भी नही फिर भी,
रोटियों के बदले लाठियां बरस जाएगी,
शायद उस इंसान को परखने में
उससे चूक हो गई,
गिरती रही लाठियाँ
और बदन सुप्त हो गई,
रुक रुक कर थमती रही सांसे,
और बच्चों की ओर देख-देख बरसती रही आँखें,
शायद निर्बल और भूखे का
यहाँ कोई स्थान नही,
या सबल ही सबकुछ है
ये सोचनेवाला
भूल गया कि वह कोई भगवान नही।
!!!Madhusudan!!!
AnuRag says
हृदयस्पर्शी रचना ✍️
Nageshwar singh says
संवेदनशील,,,, सृजन
Madhusudan Singh says
Dhanyawad bhayee
Zoya Ke Jazbaat says
मार्मिक रचना, हृदयस्पर्शी😔
Madhusudan Singh says
सुक्रिया आपका।
(Mrs.)Tara Pant says
आज बहुत यादआएगी ।ढूंढने लगी हूँ यहीं कहीं आस पास।😪
Madhusudan Singh says
कोई अंत नही क्रूरता का। लोग गर्म पानी फेक देते हैं उनके बदन पर। आह।
(Mrs.)Tara Pant says
😪
Sunith says
Very touching.
Madhusudan Singh says
Thank you very much for your appreciations.
काव्याक्षरा says
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति!
Madhusudan Singh says
पसन्द करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
rituojha says
Is kavita ki ek ek baat sachhai hai jo ham kai bar dekhte hain.. kuch log madad karte hain or kuch dhyan hi nahi dete
Madhusudan Singh says
बिल्कुल सही कहा आपने। जो असहाय और भूखे होते हैं उनके चेहरे बोलते हैं। कोई उन्हें खिलाकर देखे कितना आनन्द आता है।
ShankySalty says
काफी पीड़ादायक है लेकिन इंसानों कि असली औकात दिखती है😒
Madhusudan Singh says
बिल्कुल सही। यही हालात कुछ इंसानों की भी है जो निर्बल हैं। धन्यवाद।
Rajiv Sri... says
रुला दिया सर..!
बहुत ही मार्मिक चित्रण..!👌🏻👌🏻👌🏻
Madhusudan Singh says
बिल्कुल। मगर अक्सर ऐसा देखने को मिलता है। सुक्रिया आपका।
Pankanzy says
बहुत सुंदर
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका।