MAZDOOR/मजदूर

मजदूरों की ख्वाब,दशा,कैसी हालात सुनाएँ रे,
कदम वहाँ चल देते उनकी रोटी जहाँ बुलाये रे |२
तपती भट्ठी बदन गलाते,
दो रोटी फिर मुँख में आते,
अगर मिला मजदूरी निसदिन
खुद-किश्मत वे खुद को पाते,
मगर आज उस रोटी पर भी
देखो कैसी शामत आई,
सुविधाओं का शोर बहुत,
क्या साधन उनके दर तक आई?
दिनकर उगता,चाँद निकलता,
तम नागिन बन पल,पल डँसता,
विवश छलकते आँसूं दर्द है कितना क्या दिखलाएँ रे,
कदम वहाँ चल देते उनकी रोटी जहाँ बुलाये रे |२
सिर पर पगड़ी,जिस पर गठरी
गठरी में क्या मत पूछो,
सारा घर अरमान उसी में,
क्या क्या उसमें मत पूछो,
उसमें उस बच्चे के चिथड़े,
जो पीछे ही छूट गया,
अरमानों का एक गुलिस्ता,
वो भी उसका टूट गया,
टूट गए सब सपने दिल ने खोया क्या दिखाए रे,
कदम वहाँ चल देते उनकी रोटी जहाँ बुलाये रे |२
सफर नही ये चंद दिनों का,
मंजिल कोसो दूर पड़ी,
यहाँ क्षुधा से उदर व्याकुल,
वहाँ भूख बन काल खड़ी,
गाँव दूर है,शहर वीराना,
मुश्किल अब मंजिल तक जाना,
जद्दोजहद मौत से,भूखे आँत भी जलता जाए रे,
कदम वहाँ चल देते उनकी रोटी जहाँ बुलाये रे |२
मजबूरी,हालात,आपदा,
संकट आई भारी,
घर में जीवन,मौत सड़क पर,
विवश हुकूमत सारी,
नियम सख्त,अपनाना होगा,
कष्ट बहुत,मुस्काना होगा,
फतह सुनिश्चित धैर्य छोड़,कुछ और नजर ना आए रे,
कदम वहाँ चल देते उनकी रोटी जहाँ बुलाये रे |२
!!मधुसूदन!!

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