जश्न मना है मौत का ,क्रंदन से धरती-अम्बर डोला, लोकतंत्र की जड़े रक्त रंजित,ब्याकुल जन-मन बोला। कब तक शांत रहोगे तुम,शान्ति की बाते बोलोगे, जन मानस की कीमत कब तक,रेत बराबर तौलोगे, अश्रु की सैलाब में धरती का,आँचल अब भींग गया, हृदय विदारक चीख ने,अम्बर का भी सीना चिर गया, सहन की सीमा ...