Rakhi ki Laaj

पाँच-पाँच पतियों की रानी,
पाँचो वीर सेनानी,
आज तड़पती है,बीच सभा एक रानी,
आग बरसती है,आँखों से बन पानी,
आज तड़पती है,…..।
भूल गया देवर दुर्योधन,
अपनी सब मर्यादा,
दुशासन से गरज के बोला,
मौन सभी थे राजा,
जाओ केश पकड़कर लाओ,
बीच सभा पांचाली,
मेरी जंघा पर बैठाओ,
खोल दो उसकी साड़ी,
खेल की वस्तु नारी कबसे,पूछे सबसे रानी,
आज तड़पती है, बीच सभा वह रानी।आज—–।

पाँच पति,धृतराष्ट्र ससुर थे,
धीर,वीर,स्वाभिमानी,
कृपाचार्य और द्रोण,भीष्म,
जिस सभा मे बैठे ज्ञानी,
उसी सभा बीच नार तड़पती,
मदद को आंखें आज तरसती,
सब के सब कायर बन बैठे
मूढ़,मूर्ख,अज्ञानी,
मदद को तरसी है,कुलभूषण महारानी,
आज तड़पती है,बीच सभा वह रानी।

चला दुशासन हँसकर,
तोडी उसने सब मर्यादा,
पुरुषों की इस भ्रष्ट सभा से,
साथ नहीं कोई आया,
हाथ जोड़ तब बहन पुकारे,
अब तो भाई आजा,
तेरी बहना बीच भंवर में,
आकर लाज बचा जा,
हे कान्हा हे कृष्ण-मुरारी,
जग से अब मैं हारी,
लाज तू रखना राखी का,
अब तो मैं शरण तुम्हारी,
नयन बन्द कर जोड़ खड़ी,
होठों पर कृष्ण,मुरारी,
आज बरसती है,झरझर आंख से पानी,
आज तड़पती है, बीच सभा एक रानी।

एक हाथ से मूँछ सजाता,
मूर्ख समझ ना पाता,
खिंचे दूजे हाथ से साड़ी,
शर्म तनिक ना आता,
सबकी आंखे झुकी हुई,
मानो पशुओं का मेला,
बीच सभा मे पांचाली संग,
कान्हा एक अकेला,
साड़ी का अंबार लगा,
पर नंगा ना कर पाया,
जिसका भाई संग बहना के,
उसको कौन हराया,
समझ सका ना साड़ी है या,
नारी है पांचाली,
नारी बीच में साड़ी है या,
साड़ी है पांचाली,
थककर फर्श पर गिरा दुशासन,
मौन खड़ी एक नारी,
लाज को ढकती है,सभा बीच एक नारी,
जग पर हँसती है,बीच सभा एक नारी।

!!! मधुसूदन !!!!

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