Reservation

सदियों से गरीबों द्वारा अपने हक़ पर कब्जे की लड़ाई को सियासत द्वारा ऐसा जातिगत रंग दिया गया जिसने आज देश को दो धाराओं में बिभाजित कर गरीब को गरीब से ही लड़ा दिया जिसे देख आज बाबा साहेब भी अफशोष कर रहे होंगे, जिसे आरक्षण कहते हैं। आरक्षण एक ऐसा बिषय जिसपर कुछ भी बोला जाए तो साथ बैठे बहुत प्रिये वे दोस्त भी नाराज हो जाते हैं जिनकी ख़ुशी अपने लिए बहुत ही मायने रखती है और कुछ ना बोलें तो नाइंसाफी होगी उन तमाम लोगों के साथ जो आरक्षण की बलिबेदी पर रोज आहूत हो रहे हैं।

हम अकेला इस संसार में आएं है तो इस प्रजातंत्र में हमारा अकेला हक़ तो बनता है,
किसी समूह विशेष को जाति-धर्म के नाम पर कुछ भी दिया जाए ओ तुस्टीकरण है,
जिससे मानव क्षमता का ह्रास एवं देश की अखंडता बाधित होती है,
हमारा किसी जाति-मजहब, अमीर-गरीब से कोई बैर नहीं परन्तु तुस्टीकरण भी ठीक नहीं…
बुराईयां बहुत हैं समाज में, अपने स्वार्थ से ऊपर उठ देश एवं गरीब प्रतिभावान के बारे में सोंचे। मेरी एक छोटी सी पहल………शायद आपको पसंद आये…….

देखो जी अब एक लकीर हो गया है,
दस लाख कमानेवाला अमीर हो गया है,
अब थोड़ी गैस पर सब्सिडी बच जाएगी,
आनेवाले दिनों में गरीबों के काम आएगी |
पहल अच्छी है,पहली बार किसी निर्णय पर गर्व हुआ,
पर क्या यही लकीर आरक्षण पर भी लगाई जायेगी ?
या वहां जातिगत समीकरण ही काम आएगी ?
अगर नहीं तो,उन गरीबों पर जुल्म मत ढाईए,
गैस सब्सिडी से उनको मत हटाईये,
सवर्ण तो जन्मजात अमीर हैं,
चाहे मरें भूख और बिमारी से,
चाहे मरें किसी भी लाचारी से |
अतः सवर्णों को ही गैस सब्सिडी से हटाईये,
पर उन दस लखिये गरीबों पर जुल्म मत ढाईये,

सब्सिडी हटेगा खजाना भरेगा दिख रहा है,
पर हे तात, हे धृतराष्ट्र ये नहीं दिखता कि,
पढ़-लिखकर एक भाई रिक्सा चलाता है,
बिना पढ़े एक भाई सचिवालय चलाता है |

जाति पैमाना नहीं गरीबी और बिकास का,
तुस्टीकरण लूट लिया किश्मत अनाथ का,
मजहब और जाति खूबसूरती हैं देश के,
जातिवाद,धर्मवाद, बाधक हैं देश के,
गरीबी से लड़ने को सारा देश साथ है,
फिर भी गरीबी देखो करता अट्टहास है।
गरीब का कोई जाति ना धर्म होता है,
जख्म किसी का आखिर जख्म होता है,
वोट की राजनीति से गरीब परेशान है,
सियासत का खेल देख जनतंत्र हैरान है,

देश के लिए हम सबने कुर्बानी दी,
उसी देश में कौरओ ने पांडवों के हक़ से बेईमानी की,
आज अपने देश से पढ़-लिखकर परदेश जा रहें हैं,
वहां जाकर टैंक, मिसाईल,बम और दवाई बना रहे हैं,
और आप हैं कि अरबों रुपये गवांकर,उसे स्वदेश ला रहे हैं,

पांडवों ने कि सहयोग तो वे हक़ समझ लिए,
संख्या बल दिखा के सबको बस में कर लिए,
संसद में भीष्म, ड्रोन, धृतराष्ट्र अड़े है,
युग बदला, शासन तंत्र बदला,
परंतु हक़ की लड़ाई में आज भी
कृष्ण के बिना गुमसुम पांडव खड़े हैं,
लगता है फिर एक बार भाई को भाई से लड़ाया जाएगा,
हक़ के लिए एक बार फिर महाभारत रचाया जाएगा |

!!! मधुसूदन !!!

14 Comments

  • सही कहा परंतु एक बार किसी को किसी का हक़ दे देना आसान है फिर इस लोकतंत्र में छिनने की हिम्मत किसको है—–कौरव तो पांच गांव भी देने को तैयार नहीं थे। वे भी भाई ही थे।

  • पर आज दुबारा से इस विषय पर चिंतन जरुरी है ताकि सभी को अपनी योग्यता के अनुरूप मिल सके।

  • बिलकुल सही लिखा है आपने। आज से 67 साल पहले जब हमारा सविंधान बना था हो सकता है तब आरक्षण तब की जरूरत

    • तब भी और आज भी गरीबों की उत्थान की जरुरत है——परंतु तुस्टीकरण से सिर्फ जरूरतमंद, प्रतिभावान और गरीब का उम्रकैद होता है और कुछ नहीं। —–सुक्रिया।

    • जी फुट डालो और शासन करो के तुस्टीकरण की नीति में फसकर हमसब क्षणिक स्वार्थ में बहुत कुछ खोने के कगार पर हैं। सुक्रिया।

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