Insan aur Singhasan
तेरे ही कारण जग से यारा रार ठान ली,
जब तूने ना समझा,अपनी मैं हार मान ली।
मैं पत्थर से टकराता,
जंगल मे राह बनाता,
नामुमकिन है ना कुछ भी,
मैं शोलों पर चल जाता,
जग ने एक सुर से मेरी,जय-जयकार मान ली,
जब तूने ना समझा मुझको मैं हार मान ली।1।
आंखों में सपने मेरे,
सपनो में तेरा रूप,
मंजिल तक दौड़ा आया,
ना प्यास लगी ना भूख,
जन्नत को ठुकराया में,जन्नत तुझको मान ली,
जब तूने ना समझा मुझको मैं हार मान ली।2।
था बैठा तेरी यादों में,
दिल का दरवाजा खोल,
मैं फूल से राहें भर देता,
खुशबू से देता तौल,
धड़कन को अपनी तेरी मैं कदमों में डाल दी,
जब तूने ना समझा,अपनी मैं हार मान ली।3।
धोखे ने छीना गुरुवर छीना,
छल माँ-बाप को,
धोखे ने छीना कोमलता,
मेरे जज्बात को,
एक आशा थी तुम मेरी,तुमपर मैं विश्वास की,
जब तूने ना समझा,अपनी मैं हार मान ली।4।
कलतक शीतल थी धारा,
बहता आग बन गया,
जीवन देनेवाले का
खंजर लाल बन गया,
जब रण में देखा धड़कन,अपनी खंजर डाल दी,
क्यूँ तूने ना समझा मुझको मैं हार मान ली।5।
!!! मधुसूदन !!!
बहुत खुब, चारों भाग पढ़े, एक से बढ़ कर एक, खूब अच्छी तरह अपनी बात रखी है।
धन्यवाद आपका आपने चारो भाग पढ़ा और सराहा।
bahut hi behtarin kavita madhusudan ji
Bahut bahut dhanyawaad apkaa…apne pasand kiya aur saraahaa….
It’s just too good .💓
Dhanyawaad apkaa..