Ummeed

देख ले दर्द में कैसा हाल, हैं आँखे भीगी की भीगी,
बह रही उर बीच कैसी धार,कंचुकी गीली की गीली।

देखकर घर का बुरा हाल.
है तूने छोड़ दिया घर द्वार,
है गुजरे याद में कितने साल,
संदेसा आया ना एक बार,धैर्य है टुटा,
याद है कल की सारी बातें,
तेरी प्रेम भरी सब यादें,
दुनियां कहती किश्मत रूठा,
कहती मैं तू सच, सब झूठा,
रब से करती रोज दुहाई,
तुमपर कैसी बिपदा आयी,
रोटी महंगी तू अनजान,
हमारी राहें अब सुनसान,
रुलाते पल-पल दिन और रात,ख़ुशी क्यों छीनी रे छीनी,
बह रही उर बीच कैसी धार,कंचुकी गीली की गीली।

देख पतझड़ सा हुआ बसंत,
है उजड़ा गुलशन का भी रंग,
गरजते बादल जैसे मन,
बरसते आँखों से शबनम।दया दिखला जा,
जख्म हैं डूबे मरहम में,
फूल भी डूबे शबनम में,
हमारा और ना कोई ठौर,
मैं डूबी तेरे ही गम में,
हूँ किश्ती कहाँ मेरे पतवार,
न तेरे बिन मेरा संसार,
फंसी मैं आज बीच मझधार,दुःख क्यों दीनी रे दीनी,
बह रही उर बीच कैसी धार,कंचुकी गीली की गीली।

!!! मधुसूदन !!!

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