VISTHAPIT/विस्थापित

साथ चले थे,साथ लड़े थे,आजादी के ख्वाब जगे थे,

मगर धर्म के आड़ में जिसने वतन हमारा तोड़ दिया,

आज उसी का साथ निभा विश्वास हमारा तोड़ दिया।

कल की दहशत भूल गए तुम,दर्द हमारा भूल गए तुम,

पुनः धर्म का पहने चश्मा,प्रेम हमारा भूल गए तुम,

याद करो तुम कल की बातें,थी कैसी तब की हालातें,

चीख,तड़प आँखों में आँसूं,तिल-तिल सिमट रही ज्ज्बातेँ,

लाखों सपने तोड़ चले तब,सबकुछ अपना छोड़ कल,

मगर बसेरा जान हमारा हम उसको ना छोड़ सके तब,

तब से अबतक जुल्म हुआ क्या साक्षी मेरा वास,शहर,

सूरज तो निशदिन आया,ना आया मेरे द्वार सहर,

बहु,बेटियाँ डर,डर रहती,नित्य नए जुल्मों को सहती,

दोष हमारा धर्म अलग जिसने मानवता छोड़ दिया,

आज उसी का साथ निभा विश्वास हमारा तोड़ दिया।

अरे भीड़ बन लड़नेवालों इतना हमें बता दो तुम,

ख्वाब पाक का किसका था ये आज हमें समझा दो तुम,

सूर्य एक है सहर सभी का मेरा आंगन देख कभी,

फूलों पर हक किसका,किसके कांटे दामन देख कभी,

सर्दी से हम ठिठुर रहे थे चादर मेरा छीन लिया,

जिन आँखों में सपने थे उन आँखों को गमगीन किया,

ऐ नफरत के सौदागर किसके खंजर समझा दो तुम,

चमन उजाड़े किसने किसके,आज हमें बतला दो तुम,

ऐ शातिर तुम ज्ञानवान क्यों खुद को बदल न पाए तुम,

घुसपैठी,विस्थापित में क्यों अंतर समझ न पाए तुम,

जिसने मेरा सहर छीन ली,जान हमारा सदन छीन ली,

जिसने दी फुटपाथ प्रिय वह,रिश्ता उससे जोड़ लिया,

आज उसी का साथ निभा विश्वास हमारा तोड़ दिया।

आज उसी का साथी बन विश्वास दुबारा तोड़ दिया।

!!!मधुसूदन!!!

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