
आज मशीनी युग,
कल ढेकी,चक्की का दौर,
हुक्मउदूली ना हो जाए,दौड़ती चहुँओर,
वैसे तेरे ममत्व,वात्सल्य,त्याग की तुलना बेमानी है,
मगर जो मेरे आँखों के सामने
चलचित्र की भांति
दौड़ती
उसकी दास्ताँ पुरानी है,
आज डायपर,बिजली पंखों का काल,
कल भींगे बिस्तर और ठिठुरन भरी रात,
न जाने कितनी रात तुम जागकर बिताई होगी,
सूखे बिस्तर पर हमें सुलाकर,
न जाने कैसे,
गीले बिस्तर पर तुझे नींद आई होगी!
बचपन,
जब हम अबोध थे
न जाने कितना तुझे सताए होंगे,
शैतानियां,बदमाशियाँ,
नादानियाँ,
गिन पाना मुश्किल,
न जाने कितना तुझे रुलाये होंगे,
माँ! तेरे त्याग को गिन पाना मुश्किल,
तुझे एक पल भी भूल पाना मुश्किल।
!!!मधुसूदन!!