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Kabhi Alvida Na Kahna

खरपतवार को स्वयं निकाला,
एक-एक वो पौध लगाया,
कलतक खिला हुआ था अब वो,
बगिया है वीरान,माली छोड़ चला,
अपना घर-संसार,माली छोड़ चला।
कितने युग संघर्ष किया तूँ,
मरुस्थल को स्वर्ग किया तूँ,
है अब वही स्वर्ग वीरान,
माली छोड़ चला,
अपना घर-संसार,माली छोड़ चला।
पथ पर उमड़ा जन-सैलाब,
अंतर्मन मन मे एक भूचाल,
रुँधे गले,नयन में अश्क,
मैं क्या जानूं क्या है सत्य,
खोया कहाँ पड़ी है बगिया ये वीरान,
माली छोड़ चला,
अपना घर-संसार,माली छोड़ चला।
!!!मधुसूदन!!!

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