उसे तख्त के लिए तेरा वोट चाहिए,
और उसे पाने के लिए
वो कुछ भी करेगा।
उसे तनिक भी फिक्र नहीं तेरे जाति,धर्म
या तेरी खुशहाली का,
मगर वो सिर्फ तेरा है,
ऐसा स्वांग रचेगा।
दिखलाएगा तुझे तेरे आसपास,
तेरे अपनों में ही तेरे दुश्मनों का अक्स,
वो नफरत का पुनः खड़ा एक दीवार करेगा,
रह जायेंगे फिर तेरे धरे के धरे तेरे ज्ञान और अपनापन,
आओगे तुम निश्चित ही उसके झांसे में,
लड़ोगे,कटोगे,करोगे जंग अपनों से,
उसके खातिर,
रोवोगे तुम
पुनः
और वो पुनः हंसेगा,वो पुनः हंसेगा।
!!! मधुसूदन !!!
BAHRUPIA/ बहरूपिया

