
मेरे हर समस्याओं का निदान है पास तेरे,
परंतु मैं समस्याएं गिनाऊँ ये तुम्हें पसंद नही,
मेरे कुछ भी लिखने,बोलने,पूछने,गाने से,
हिल जाता है तख्त तेरा,
हम कुछ भी बोलें,लिखें, गाएं,
ये तुम्हें पसंद नही।
मैं मूक रहूं और भूखा मरूं,
या करूं सवाल और हवालात पाऊं ?
ऐसे कब तक करूं तेरे खोखले वादों का यशोगान ?
टूटता समाज और गौरवान्वित तुम,
अपनी स्वार्थ भरी बोल पर,
तख्त जिसपर आसीन तुम,
मालूम तुम्हें हासिल वह,
धर्म एवं जातियों के जोर पर,
फिर क्यों ना कहूं कि ये जनता का,
जनता के लिए,जनता द्वारा शासित लोकतंत्र नही।
आज जिधर देखो उधर न्यूज चैनलों पर
गूंजते शोर,
चीखते चिल्लाते,
मर्यादाओं की सीमाएं लांघते लोग,
नही रहे निष्पक्ष न्यूज चैनल और अखबार,
पक्ष विपक्ष में बंट गए पत्रकार,
फिर कैसे ना कहूं कि लोकतंत्र का सुरक्षित
अब चौथा स्तंभ नही।
अब तो तेरा एकमात्र लक्ष्य है उस गुर को सीखना,
कैसे खरीद पाऊं,शेष है सिर्फ न्यायपालिका का बिकना,
तेरे इस ख्वाब का पर्दाफाश करूं
ये तुम्हें पसंद नही,
तुम्हें पसंद नही सच सुनना,
और हमें पसंद नही झूठ के सम्मुख झुकना। !!!मधुसूदन!!!

