वैसे तो आज के बैज्ञानिक दौर में भूत-प्रेत की बात करना खुद का मजाक उड़ाने जैसा है परन्तु जब विज्ञान ही अभी तक पूर्ण नहीं है फिर किसी को भी एक सिरे से बकवास बोलना भी ठीक नहीं|
कहानी उन दिनों की है जब मैं दिल्ली में कुछ दोस्तों के साथ कमरा शेयर कर रहा करता था| हम सात लड़के मिलकर एक मकान किराए पर ले लिए थे जिसमे तीन कमरे थे|नीचे के कमरे में हम दो और ऊपर के दो कमरे में पांच लड़के रहते थे|अचानक मकान मालिक ने घर खाली करने को कहा क्यूंकि उनके घर में शादी थी|आनन-फानन में हम सातो मकान खोजने लगे| मुश्किल से एक खाली मकान मिला जहां तीन सेपरेट कमरे थे जिसमे सबसे नीचे मकान मालिक भी रहता था|
हमने एक कमरा को दिन में साफ़ सफाई कर लिया|सारा सामान लाते-लाते लगभग रात के दस बज गए| मैं और मेरा एक रूम साथी बाहर होटल में खा लिए और शेष लोग खाना बनाने लगे|सबको खाते पीते रात को लगभग ग्यारह बज गए| गर्मी का मौसम था आनन-फानन में पंखा,कूलर कुछ भी सेट नहीं हो पाया था| सबका एक कमरा में सो पाना भी मुश्किल था | अतः मैं, शम्भू पाठक और उदय शर्मा ने ऊपर की छत पर खुले आसमान में सोने का फैसला किया और बेड लेकर ऊपर चले गए| ऊपर का छत साफ़ नहीं था परन्तु रात गुजारनी थी इसलिए थोड़ी बहुत सफाई कर हम तीनो लेट गए | एक दूसरे से बाते करते-करते लगभग बारह बज गया|
चुकी हमें कुछ जरुरी काम से पांच बजे ही निकलना था इसलिए सब से बोला “भाई अब सो जा|” फिर क्या था दोनों अब मजाकिये अंदाज में इसी शब्द को बार-बार दोहराने लगे, किसी तरह हम तीनो पांच मिनट के लिए शांत हुए होंगे तभी लगा कोई सीढ़ी से ऊपर की ओर आ रहा है| देखा गोरा जांघ और काला हाफ पैंट बस समझ गया ब्यास ही होगा क्योंकि वह बहुत काला पैंट पहनता था साथ ही शराब भी पीता था इसलिए बकबक की डर से हम सभी सोने का नाटक करने लगे| वह आया और हमारे पैर के नीचे सो गया| उसके शरीर मेरे पैर से छू रहा था| मैंने खुद को ऊपर कर लिया ताकि उसे कुछ बहाना ना मिल जाए और फिर रात बेकार| थोड़ी देर बाद वह उठा और सिर की तरफ जा कर सो गया| हम सभी चुपचाप आँख बंद कर पड़े रहे|मुश्किल से पांच मिनट हुए होंगे अचानक शम्भू पाठक की गलगलाने की आवाज आने लगी …अ…अ…अ…अ…अ…..!
हो गया सोना …..मैंने सोचा अब तीनो पूरी रात नौटंकी करेगा|अभी सोच ही रहा था की उदय शर्मा जो की मेरे बगल में सोया हुआ था उसकी भी गलगलाने की आवाज आयी …..अ…अ…अ…अ…अ…..! इस पागलपन देख मन तो किया की उसे एक केहुनी जड़ दूँ फिर सोंचा जरूर जान बूझकर ऐसा कर रहा होगा ताकि हम छेड़े| अक्सर इस तरह के मजाक हम सब किया करते थे।मगर गलगलाने वाली आवाज आज तक किसी ने नहीं निकाली थी। फिर भी मैं शैतानी समझ चुपचाप रहा|कुछ मिनट हुआ होगा अचानक मेरे पैर पर किसी ने अपना पैर रख दिया|मेरे गुस्से का ठिकाना ना रहा मैंने अपनी आँखें खोली तो देखा ब्यास है,वही गोरा जांघ| समझते देर ना लगी की अब सरारत ब्यास की शुरू हो गयी|मैं चुपचाप अपनी आँखे बंद कर ली परन्तु वह नहीं माना और अपने शरीर का सारा बल मेरे शरीर पर देने लगा|तिलमिला कर मैंने आँखे खोली और कुछ बोलने ही वाला था की सामने का नजारा देख हतप्रभ रह गया|वही गोरा जांघ,काला पैंट,काली टी शर्ट परन्तु गर्दन के ऊपर का भाग ही नहीं|मेरी तो हवाईयां उड़ गयी|क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा था|फिर समझते देर ना लगी की सामने जो है वो ब्यास अथवा कोई इंसान नहीं बल्कि भूत है| मेरी साँसे तेज चलने लगी|बोलने का प्रयास किया परन्तु आवाज नहीं|उदय शर्मा को पैर से जगाने का प्रयास किया परन्तु हाथ-पैर काम नहीं कर रहे थे|अब उसके हाथ मेरे गर्दन को दबाने लगे| सपना होता तो और बात थी|खुली आँख से देख रहा था|पलभर तो ऐसा लगा जैसे आज की रात मेरी आखिरी रात होगी|मौत से लड़ता मेरी जोर से गलगलाने की आवाज निकली …….अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ….!
उदय शर्मा : मधु जी मधु …क्या हुआ मधु जी? उसने मेरे शरीर को झकझोरा|मैं हरकत में आया| मैंने उसे सीढ़ी से लेकर अबतक की सारी बातें बता दी जो मैंने देखा |
उदय शर्मा :यार मैंने भी यही देखा की ब्यास सीढ़ी से आ रहा है| देखकर मैंने आँखें बंद कर ली|फिर भी वो आते ही मेरे को छेड़ने लगा| मैंने देखा की ये ब्यास नहीं कोई और है फिर गायत्री पाठ शुरू कर दिया|
मैंने कहा : अरे यार उसी समय बोलना था हम सब नीचे चल चलते| ऐसे में तो किसी का जान चला जाता|
उदय शर्मा :भाई हाथ पैर नहीं चल रहे थे साथ ही आवाज भी नहीं निकल रहा था इसलिए नहीं उठा पाए|अब क्या किया जाए?
मैंने कहा :करना क्या है नीचे चलते हैं| फिर हम दोनों ने शम्भू पाठक को जगाया| वे ऐसे उठे जैसे सोये ही नहीं थे और उठते ही बोले…….पहले वह मेरे पास ही आया था और हमसे खैनी मांगने लगा| मैंने ब्यास समझ कर खैनी नहीं दिया फिर वह मेरा गर्दन दबाने लगा| सिर उठा कर देखा तो उसका चेहरा ही नहीं था| फिर हम हनुमान चालीसा पढ़ने लगे|तब वह उदय शर्मा के पास फिर आपके पास गया| हम सब सुन रहे थे और समझ रहे थे|
हम तीनो एक दूसरे का हाथ पकड़ धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे आ गए| नीचे से ऊपर जाने और पूरी घटना घटित होने में मात्र आधे घंटे ही बीते होंगे परन्तु हम कितना भी दरवाजा खटखटाये कोई नहीं सुन रहा था| थोड़ी देर में सुनील नाम का लड़का कमरा खोलते हुए बोलता है की भैया लगा की कोई बोलने ही नहीं दे रहा है|
हम तीनो कमरे में चले गए|दस बाई बारह का कमरा होगा उसमें सात लड़के—अंदाजा लगा सकते है कैसे सो रहे होंगे| हम तीनो ने नहीं सोने का फैसला किया साथ ही कोई भी घटना घटने पर एक दूजे को हाथ से इशारा करने को कहा गया| हम नीचे सो रहे चारो को बता देते परन्तु उसमे दो थोड़ी पी ली थी और शेष दो में से एक शम्भू पाठक का भाई संतन पाठक भूत-प्रेत तो बिलकुल ही नहीं मानते थे,जगाने पर रुष्ट हो जाते|
कमरे में दीवाल तरफ शम्भू पाठक फिर उदय शर्मा उसके बाद मैं लेट गया| मेरे ठीक बगल में संतन पाठक थे| मजाल है कि कोई उनके शरीर को रात में छू दे| अतएव हम भी पूरी सावधानी से उदय शर्मा कि तरफ ही थे|
अचानक लगा जैसे कोई कमरे में प्रवेश किया हमने तुरत उदय शर्मा का हाथ दबाया| उसने भी प्रतिक्रया में हमारा हाथ दबाया|थोड़ी देर में संतन पाठक कि गलगलाने की आवाज आती है …….अ…अ…अ…अ…अ…!
मैंने उदय शर्मा का फिर हाथ दबाया| उसने हमें इशारे में चुप रहने को बोला क्योंकि संतन भूत-प्रेत मानता नहीं फिर थोड़ा देख भी ले| पुनः थोड़ी देर में संतन पाठक की गलगलाने की करकस आवाज लगातार आने लगी ..अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ…अ….।|
मुझसे रहा नहीं गया| हमने संतन पाठक के शरीर को हिलाया फिर बोला क्या हुआ ?
संतन पाठक : कुछ नहीं बहुत जोर से पेट में दर्द हो रहा था |
मैंने कहा : क्यों अब ठीक हो गया क्या कि कोई और बात है ?
संतन पाठक : नहीं नहीं अब ठीक है और कोई बात नहीं| भला पंडित जी कैसे बोल दें कि भूत गला दबा रहा था|
पुनः हम सभी शांत हो गए| अब हम उदय की तरफ सटते जाते और संतन पाठक मेरी ओर आते जाते जबकि कभी वे शरीर में सटकर नहीं सोते थे| हम समझ गए वे डर रहे है| हमने उन्हें अपने शरीर में सटने दिया|
थोड़ी देर बाद सुनील कि आवाज आती है जिसने दरवाजा खोला था ……हो.. …हो ……..हो …!
मैंने उदय शर्मा का हाथ दबाया|उसने भी प्रतिक्रया ब्यक्त किया। पुनः सुनील कि अजीबो गरीब आवाज आती है ……….हो …हो ……..हो ……हो …हो ……..हो …!
अब मुझसे रहा नहीं गया| समझ गया अगर आजमाते रहे तो आज जरूर कुछ घटित हो जाएगा| फिर किसी को बिना कुछ बोले मैंने फूल आवाज में डेक चालु कर हनुमान चालीसा का सीडी लगा दिया| अगरबत्ती जला दी एवं अंदर-बाहर बल्ब जला दिया| रात को लगभग एक बज रहे होंगे| कोई ग्यारह बजे के बाद टीवी चालु रखे संतन पाठक को मंजूर नहीं आज एक बजे हनुमान चालीसा चल रहा था परन्तु वे बिलकुल शांत आँखें बंद किये हुए थे परंतु एक बार भी बहुत की बात नहीं की।हम में से किसी ने सारी रात नहीं सोया सिवाय उनके जिन्होंने पी रखी थी |
सुबह को सभी कमरा खोज रहे थे| उस दिन मकान नहीं मिला| सभी किसी न किसी दोस्त के यहां सोने का फैसला किया| दूसरे जगह सोने कि बात को अँधेरे में रख संतन पाठक से पूछा गया कि अभी तक रूम पर क्यों नहीं आये| उनका जवाब था कि आज हम दोस्त के यहां सोयेंगे परन्तु भूत कि बात बिलकुल नहीं बोले|
तीसरे दिन मकान मिला|चुकी सामान बहुत था दो दिन पहले ही हम आये थे और फिर गाडी गली में लगी थी जिसे देख कर सामने का एक लड़का हमसे पूछ दिया : भाई आपलोग तो दो दिन पहले ही आये थे न ?
मैंने कहा : हाँ |
उसने पूछा : अचानक फिर खाली क्यों कर रहे हैं ? हमने सारी बात बिस्तार से बता दी |
उसने बोला :तभी मैं सोच रहा था कि पिछले एक साल से लगभग पचासों किरायेदार आये परन्तु कोई भी एक दिन से ज्यादा नहीं रहा| पूछने पर कोई किसी को कुछ नहीं बताता था| तभी सामने से एक दूसरे लड़के ने कहा कि एक साल पहले कि बात है इस कमरे में तीन लड़के रहते थे| आप लोगों के साथ एक गोरा लड़का है न ठीक उसी के जैसे एक लड़का था|फैक्ट्री से उसे एक साल का एक बार वेतन मिला था| दूसरे दिन उसने घर जाने की तैयारी की थी उसका नया जूता आज भी आपके सीढ़ी के ऊपर होगा, परन्तु उसके दो दोस्तों ने मिलकर पैसे की लालच में उसको मार दिया और ताला लगाकर फरार हो गए| इस बात की आस पास किसी को कोई भनक तक नहीं लगी| कुछ दिनों बाद अजीब बदबू आने लगी और बदबू बढ़ती गयी| फिर पुलिस आयी ,ताला तोड़ा तब जाकर पता चला| लगता है उसी कि आत्मा होगी जिसने आपलोग को तंग किया| मैंने भी जूता देखा और सामने वाले लड़के कि हां में हां मिला कमरा खाली कर दी| आज हम सातों अलग-अलग रहते हैं | जब भी मिलते हैं उस रात की बात जरूर करते हैं और नहीं माननेवाले आज भी इस आपबीती को भ्रम की संज्ञा देते हैं |
!!! मधुसुदन !!!