आसमान में गरज रहा क्यों मेघा रे,
तेरी धरती प्यासी प्यास बुझा जा रे|
नजरों से था दूर याद मैं करती थी,
रात-दिन आने की राह निरखती थी,
पास में आकर दूर समझ ना पाऊँ मैं,
अपनी दर्द को कैसे अब दिखलाऊँ मैं,
आँखमिचौली धुप से खेल ना मेघा रे,
तेरी धरती प्यासी प्यास बुझा जा रे |
इंसानों सी आदत तूने कहाँ से सीखा मेघ बता,
अपने प्रियतम को तरसाना कब से सीखा मेघ बता,
धुप बिरह की मुझे जलाती,सहती तेरी यादों में,
नजर दिखाकर पास ना आना,कहाँ से सीखा मेघ बता,
अब तो आजा तुझे बुलाऊँ ऐ मेघा मतवाला रे,
तेरी धरती प्यासी प्यास बुझा जा रे |
तड़प देखकर गरज उठा,आगोश में धरती आयी,
पिघल गया बादल उसने धरती की प्यास बुझाई,
शांत धरा,चहुओर घेरकर ,गरज के बरसा मेघा,
ओस, कुहासा, कोहरा बन, धरती पर डाला डेरा,
प्यास बुझी धरती की,ऐ मेघा मतवाले,
तेरी धरती अब ना प्यासी मेघा रे ,
आसमान में गरज रहा क्यों मेघा रे,
तेरी धरती अब ना प्यासी मेघा रे |
!!! Madhusudan !!!