मैं एक अदना सा इंसान,
जग में मेरी क्या पहचान,
मेरी सदियों से एक उलझन,
रोटी,कपड़ा और मकान,मैं एक अदना सा इंसान।
राजतन्त्र या लोकतंत्र हो,
या हो खेल सिंघासन का,
जाति,धर्म या देश की सीमा,
या हो खेल बिभाजन का,
बातें सब ये बहुत बडी है,
सदियों से इससे अनजान,मैं एक अदना सा इंसान।
सिंघासन को जंग हुई है,
सदियों से इस धरती पर,
सैनिक मरते शासक बनते,
सदियों से इस धरती पर,
हम तो केवल करदाता हैं,
मेरी और नहीं पहचान,मैं एक अदना सा इंसान।
जैसा शासक कर भी वैसा,
कैसे कह दूं कौन है कैसा,
शासक क्रूर तो करता शोषण,
रहा दयालु करता पोषण,
इनमें अटकी मेरी जान,मैं एक अदना सा इंसान,
मेरी हालत एक समान,मैं एक अदना सा इंसान।
!!! मधुसूदन !!!