Insan aur Singhashan(Part.1)
मैं एक अदना सा इंसान,
जग में मेरी क्या पहचान,
मेरी सदियों से एक उलझन,
रोटी,कपड़ा और मकान,मैं एक अदना सा इंसान।
राजतन्त्र या लोकतंत्र हो,
या हो खेल सिंघासन का,
जाति,धर्म या देश की सीमा,
या हो खेल बिभाजन का,
बातें सब ये बहुत बडी है,
सदियों से इससे अनजान,मैं एक अदना सा इंसान।
सिंघासन को जंग हुई है,
सदियों से इस धरती पर,
सैनिक मरते शासक बनते,
सदियों से इस धरती पर,
हम तो केवल करदाता हैं,
मेरी और नहीं पहचान,मैं एक अदना सा इंसान।
जैसा शासक कर भी वैसा,
कैसे कह दूं कौन है कैसा,
शासक क्रूर तो करता शोषण,
रहा दयालु करता पोषण,
इनमें अटकी मेरी जान,मैं एक अदना सा इंसान,
मेरी हालत एक समान,मैं एक अदना सा इंसान।
!!! मधुसूदन !!!
Behtareen likhe h aap sir
Bahut bahut dhanyawaad apkaa…pasand karne aur saraahne ke liye.
Beautifully inked out sir…. Bahot khoob👌👏
Thabk you very much for your valuable comments.
😊😊
हमेशा की तरह बहुत ही बेमिसाल लिखा आपने।
Koti koti dhanyawaad aapka bahumulya comments ke liye
आपके सुंदर रचनाओ पर अपना विचार व्यक्त करना हमारे लिए खुशी की बात है।
Sukriya apka….
😊
Wah,
Sukriya apka…..
Wow a beautiful story of insan
Your comments are very very important for me…..thank you very much for your appreciation.
Most welcome sir
वाह सर
Thank u very much.
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।
sukriya apka pasand evam prassansaa karne ke liye
Bahut accha
dhanyawad apka
Waah waah…bht khoob
bahut bahut dhanyawad apka