जितना समझा,
कम रहा,
बस इन्हीं बातों का गम रहा,
न जाने कितने तूफान आए,
न जाने कितने पर्वत
राहों में
चक्रवात आए,
मगर
सदैव आगे बढ़ता रहा,
तेरे हौसले,जिद्द में
पल-पल
निखरता रहा,
सबकुछ लुटा दी,
मेरे एक मुस्कान पर,
कितना समझाया तूने
हर गलत बात पर,
ऐसे ही नही हर बार मझधार से निकलता रहा,
सवाल कैसा भी हो
उलझता
मगर हल करता रहा,
सफल समझा सबने हमें,
मगर आज भी
स्वयं को मैं
अनुतीर्ण समझता रहा,
क्योंकि
जो अर्जित किया वो
ज्ञान,सम्मान
धन-वैभव ,
ताकत,
सब मिलकर भी
नही कर पाए रंगीन वो पन्ने जवाबों से
जहाँ खड़ी थी पहेली बन,
माँ और जिंदगी,
बहुत की तपस्या
बहुत की
ईश्वर की बंदगी,ईश्वर की बंदगी।
!!!मधुसूदन!!!
MAA AUR JINDGI/माँ और जिंदगी
