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Nirdayi bana Insan

कैसा कलियुग आया सबकी,मिटती अब पहचान रे,
गौ माता और माता दोनों की,मुश्किल में जान रे।

गाय हमारी माता जग में,
कहता वेद,पुराण है,
मात-पिता के चरणों मे ही,
रहता चारो धाम है,
एक पिलाती दूध पुत्र को,
रक्त से उसे बनाती है,
दूजा दूध की गंगा,
अपने स्तन से बरसाती है,
मगर दूध की लाज नही अब,
हाय दया नहीं आता,
बृद्धाश्रम माँ-बाप को भेजा,
बूचड़खाने गौ माता,
जन्म दिया एक पाला उसको,भूल गया इंसान रे,
गौ माता और माता दोनों की,मुश्किल में जान रे।1

दुनियाँ में कुछ लोग हैं जो,
माँ-बाप को गाली देते हैं,
कुछ ऐसे भी लोग हैं जो,
माँ-बाप को खुशियाँ देते हैं,
कितने ऐसे लोग बता,
बूढ़ी गायों को रखते हैं,
कितने जो बिन दूध की ऐसी,
गाय की सेवा करते हैं,
मात पिता का जीवन अर्पित,
बच्चों के मुश्काने में,
ताकत जबतक दूध की नदियाँ,
गौ माता के दामन में,
मगर थके जब दोनों हमको,
बोझ दिखाई देते हैं,
बृद्धाश्रम माँ-बाप,
गाय का खुद ही सौदा करते हैं,
देख सका ना अपनी करनी,पत्थर दिल इंसान रे,
गौरक्षा के नाम पर नफरत क्यों करता इंसान रे।2

इंसाँ और पशुओं की हत्या,
किसी पंथ का कर्म नहीं,
इन्हें सताना पाप है जग में,
मानव का ये धर्म नहीं,
कल तक घर-घर दूध का गागर,
आज गाँव में दूध कहाँ,
कृषक तरसते गाय,बैल को,
महंगाई पर जोर नही,
सच है हम हर जीव का भक्षक,
फिर भी गाय बचाना है,
हम भी कल माँ-बाप बनेंगे,
हमको फर्ज निभाना है,
बृद्धाश्रम की भीड़ बताती,
बिकसित कितने हो गए हम,
गली-गली में बूचड़खाने,
खून के प्यासे हो गए हम,
मूक पशु की आंखे देखो,
मेरी चाल बताते हैं,
मात-पिता भी मूक पशु सा,
झर-झर नीर बहाते हैं,
देख बढ़ी कालाबाजारी पशुओं के बाजार रे,
गौ माता और माता दोनों की,मुश्किल में जान रे।3

!!! मधुसूदन !!!

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