
ना लडनेवालो की कमी, ना लडानेवालो की,
जंग एक बार कभी,
ठानो तो सही।
ढ़ूँढ़ रहे कहां दोस्त और दुश्मन,
सब तो हैं तेरे घर में,
चश्मा वहम का उतारो तो सही।
दूर होते गए मंजिल,जो करीब थे कभी,
मृग मरीचिका से स्वयं को
निकालो तो सही,
है वक्त प्रतिकूल,
अनुकूल भी जरूर होगा,
निकलेगा राह,निकालो तो सही,
चश्मा वहम का उतारो तो सही।
!!!मधुसूदन!!!