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Ek JAWAAN EK KISAN

भारत माँ के दो संतान एक जवान एक किसान,
दिन-रात में भेद न जाना,एक जवान एक किसान।
शरहद पर एक अड़िग खड़ा,
पर्वत भी रोज खिसकता है,
देश प्रेम में हरपल जान,
हथेली लेकर चलता है,
गर्मी,सर्दी,बारिश का पल,
पर्वत जैसे सहता है,
हाड-मांस के पुतले को,
पाषाण बनाकर रखता है,
पता नहीं पहले क्या मिलना,
पेट को रोटी या गोली,
पता है उस बिन घर की हालत,
मौत से भी बदतर होगी,
जान एक कई जान उसी पर,
पिता,पुत्र,माँ,घरवाली,
छोटे शिशु को रब ने सौपा,
उसी के ऊपर रखवाली,
मगर दफन हर दर्द किये,सरहद पर मरता एक जवान,
दिन-रात में भेद न जाना,एक जवान एक किसान।

दूजा धरती माँ का बेटा,
मानसून से लड़ता है,
पुरखों की इस माटी को वह,
अपनी जान समझता है,
बैलों के संग बैल बना,
पत्थर को मोम बनाता है,
धरती माँ के सीने से,
अनाज उगाकर लाता है,
धुप में जलते पांव खेत में,
पूस की ठंडी राते हों,
आसमान के तले अडिग,
चाहे बरसात की राते हों,
हाड-मांस के पुतले को वह,
पत्थर सा कर जाता है,
खुद भूखे रहकर भी,
सारे जग का भूख मिटाता है,
जलता तन पर हँसते रहता,
मन जलता फिर रोता है,
कठिन परिश्रम की कीमत,
जब रेत बराबर होता है,
सूखे-बाढ़ से ज्यादा तड़पा,फसल की कीमत देख किसान,
दिन-रात में भेद न जाना,एक जवान एक किसान।

घर के अंदर धुप जलाती,
ठंढ से हम घबराते हैं,
बारिश की बौछार देखकर,
घर में ही रह जाते हैं,
मगर यही वो पल है जब,
आतंक की शंका होती है,
शरहद हो या फसल,
जरुरत देखभाल की होती है,
जान की कीमत हम जैसे ही,
दर्द उसे भी होता है,
मगर अडिग एक शरहद दूजा,
फसलों के संग होता है,
ऐ भारत के रखवालों,अब भी इन दोनों को पहचान,
दिन-रात में भेद न जाना,एक जवान एक किसान।

!!! मधुसूदन !!!

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