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*जून 2017 की हृदयविदारक सच्ची घटना पर आधारित कविता।*
महंगी ने ली ली फिर से जान एक किसान की,
महंगी ने ली ली फिर से जान एक किसान की,
सचमुच में मुश्किल में है जान अब किसान की,
महंगी ने ली ली फिर से जान एक किसान की।
हीरे,मोती,सोने,चांदी,
चमड़े के ब्यापार में,
माल खजाना भरे हुए हैं,
इनके ही भंडार में,
बढ़ते हैं तन्ख्वाह यहां पर,
देखो अफसरशाहों के,
किसे पता मातम मनती है,
घर मे रोज किसानों के,
घर सुनी दिखता जस श्मशान अब किसान की,2
सचमुच में मुश्किल में है जान अब किसान की,
महंगी ने ली ली फिर से जान एक किसान की।
जग का भरता पेट वही अब,
भूखे ही सो जाता है,
रबड़ी खाते कुत्ते, भूखे
कृषक यहां मिट जाता है,
बदन गलाता कृषक धूप में,
गर्मी और बरसात में,
फिर भी पैसे कफ़न के ना,
रहते मरने के बाद में,
हो जाते खेत फिर नीलाम,उस किसान की,
सचमुच में मुश्किल में है जान अब किसान की,
महंगी ने ली ली फिर से जान,एक किसान की।
झूल रहा है बदन डोर से,
तन में है अब जान कहाँ,
बगल के कमरे में माँ,बिटिया,
आफत से अनजान वहाँ,
माली गुलशन छोड़ के भागा,
अनजाना फुलवारी है,
सोच के देखो उनपर कैसी,
बिजली गिरनेवाली है,
मेघा संग बरसेगी अब चाँद,उस किसान की,२
सचमुच में मुश्किल में है जान अब किसान की,
महंगी ने ली ली फिर से जान एक किसान की|
!!! मधुसूदन !!!
Cont…..
Rekha Sahay says
कुव्यवस्था का वर्णन करती कविता है . जिसने दर्द भी है और सच्चाई भी .
Madhusudan says
Sukriya aapne pasand kiya aur saraha.
aruna3 says
Only Government of India is responsible for those situations.wonderful poem.
Madhusudan says
Absolutely……Thank hou very much.
aruna3 says
Welcome,dear!!
#यज्ञ says
मार्मिक और यथार्थ को दर्शाती आपकी कृति ….
सूंदर रचना सर जी …
Madhusudan says
सुक्रिया आपने रचना पसन्द किया और सराहा।