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Politics 

देश बुरा ना हम बुरे,ना बुरा है अपना संबिधान,
राजनीत की चक्की में है,फिर भी पीस रहा इंसान।
सत्तर साल की हुयी आजादी,
क्या खोये क्या पाये हम,
आओ देखें गुलशन अपना,
क्या बोये क्या पाये हम,
खेत बिना पानी के अब भी,
मजदूरों का हाल बेहाल,
बिद्यालय से शिक्षा गायब,
बेरोजगार की लगी कतार,
कही सुरक्षा नजर न आती,
चोर, लफंगे घूम रहे हैं,
पानी जैसा खून है बहता,
इंसाँ डर से छुप रहे हैं,
मनी, माफिया और सौदागर,
लोकतंत्र पर काबिज हैं,
संग मिला है नायक उससे,
जिसको अपना मानी है,
नेता,नौकरशाह मिले हैं,
रोज घोटाला करते हैं,
आम लोग की हालत कैसी,
रोज भूख से मरते हैं,
जनसंख्या का बोझ बढ़ा है,
चार गुना आजादी से,
नफरत की जो फसल लगाए,
डर लगता बर्बादी से,
भूखे और भिखमंगों की,
आज भी लगती देख कतार,
राजनीत की चक्की में है,फिर भी पीस रहा इंसान।

कितनो की बलिबेदी देकर,
मिली हमें आजादी है,
भूल गए अपनी हिम्मत,
सारी दुनियां पहचानी है,
मगर यहां हम अभी भी अटके,
जाति-धर्म के झंझट में,
बिखर रहें हैं सारे सपने,
रूढ़िवादी मतलब में,
कही पर लड़ती हक़ को नारी,
जद्दोजहद में पड़ा आज किसान,
राजनीत की चक्की में है,फिर भी पीस रहा इंसान।

मिली आजादी,मगर गुलामी,
आओ उसे मिटाएं हम,
सोने की चिड़िया भारत को,
आ मिलजुल बनाएं हम,
तुस्टीकरण को दूर भगाएं,
ऊंच-नीच का भेद मिटाएं,
रूढ़िवादी,ढोंग मिटाकर,
नारी को सम्मान दिलाएं,
इक्कीसवी सदी की जश्न मनाते,
खुद को सदियों पीछे पाते,
एक दूजे से राजनीति में,
लड़ते और खो देते जान,
राजनीत की चक्की में है,फिर भी पीस रहा इंसान।

!!! मधुसूदन !!!

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