HOLI/होली
एक दौर था अभावों का,तब पकवान बामुश्किल बनते,और रंग खरीदने को पैसे भी कम थे,मगर होली का रंग कैसा? ये मत पूछना,बस उमंग ही उमंग थे, रंग ही रंग थे।तब बनती थी दोस्तों की टोलियाँ,टूट पड़ते उनपर जो छुपते,शर्माते,नजरों से बचना नामुमकिन,कौन ऐसे जो कोरे रह जाते,तब बजते ढोलक,झाँझघर-घर होली गाते,माना अभावों का दौर थामगर […]