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एक किसान था। उसकी सम्पन्नता एवं किसानी के किस्से दूर,दूर तक विख्यात थी। लोग उससे किसानी के गुर सिखने आया करते थे। मगर उसके अधिकतर बच्चे कामचोर और आलसी निकले। वे आठ बजे सुबह उठते गप्पे हाँकते, दोपहर को खाते और पुनः सो जाते। एक दिन उस किसान की मृत्यु हो गयी। घर गृहस्थी का बोझ उनके बेटों पर आ गया। मगर समय से खेतों पर नहीं जाने एवं सदैव सोये रहने के कारण उनकी खेती कमजोर होती चली गयी फलस्वरूप आमदनी आधी हो गयी।
एक दिन एक भाई ने अपने भाईयों से कहा कि अब पहले जैसे खेती में आमदनी नहीं रहा। इससे ज्यादा तो बटाई से आ जाएगा। सबने अपनी कमी देखने के बजाय हाँ में हाँ मिलाई और पहले दूर की जमीन फिर धीरे-धीरे सारी जमीन बटाई पर लगा दी। अब जब भी बीमारी होती या कोई त्यौहार,बढे खर्चे को पूरा करने के लिए वे धीरे-धीरे जमीन को पहले रेहन ( गिरवी ) तत्पश्चात बटाईदारों के हाथों बेचते चले गए और एक दिन ऐसा आया जब वे खुद बटाईदारों के यहाँ नौकरी (मजदूरी) करने लगे। मतलब किसान से मजदुर हो गए।
आज देश की हालत भी कुछ ऐसी ही हो गयी है। हम धीरे-धीरे किसान की तरह ही अपने सारे जगह उद्योग धंधे,विदेशियों के हाथों गिरवी करते जा रहे हैं तथा उससे होनेवाली आमद को हम और सरकार मिल बाँट कर खाते जा रहे हैं। हमें जो भी मुफ्त का शौचालय, आवास, अनाज,साईकल,शिक्षा,इलाज,गैस, फ्री का बिजली,लैपटॉप, मोबाईल,यातायात इत्यादि मुहैया कराएगा हम वोट उसी को देंगे तथा जो इस मुफ्तखोरी के खिलाफ बोलेगा उसे तख़्त से गिरा देंगे।
आज तेजस रेलगाड़ी आयी है, कल सिर्फ तेजस रेलगाड़ी ही दिखेगी।
दोषी कौन ?
सरकार को कुसूरवार कहने के बजाय खुद को बदलिए।
अगर खुद को नहीं बदल सकते तो चुपचाप देश को गिरवी होते देखते रहिये।
“बिना मिहनत और मुफ्त की खाने की आदत इंसान को रुग्ण बना देती है।
अगर घर में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ जाए तो घर रुग्ण हो जाता है तथा देश के लोगों को मुफ्तखोरी की आदत लग जाए तो देश रुग्ण और गिरवी हो जाती है।”
!!! मधुसूदन !!!
Ila Rani says
इस लेख के विषय में इतना ही कहूंगी – उचित समय पर उचित कटाक्ष। नमन🙏
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका।🙏🙏
aruna3 says
बहुत ही मर्म भेदी लेखन है आपका।
Madhusudan Singh says
दुख है आज का हालात देखकर। एक एक कर हमारा अपना सब निजीकरण हो रहा है। मिलब नही किसी को। अगर सबकुछ बाहरी ही करे फिर सरकार का क्या मतलब।
aruna3 says
Yeah.true.
Rekha Sahay says
बेहद महत्वपूर्ण विषय आपने उठाई है. वह भी रोचक कहानी के उदाहरण से. मुझे अक्सर यह लगता है कि- हम कहाँ जा रहें हैं?
Madhusudan Singh says
hamare ander vidyamaan lobh aur lobh ko pura karne men lagi sarkaar …..pataa nahi ham kahan jaakar es lobh kaa tyaag karenge yaa gulaami hi mere nasib men likhi hai.
ShankySalty says
देश कि अर्थव्यवस्था इतनी खराब हो चुकी है कि चाय कि टपरी पर कोई आपको उधार की चाय तक ना पिलाए। फिर भी मोदी-मोदी-मोदी…….देश के महान अर्थशास्त्री डॉ॰ सुब्रह्मण्यम् स्वामी को तिरस्कृत किया जा रहा है और एक दार्शनिक (निर्मला सितारमण) के हाथों अर्थव्यवस्था सौंपी जा रही है।
लेकिन देश कि अर्थव्यवस्था को ठीक करना नहीं जानती है या फिर वह जान कर ठीक नहीं कर रही है।
अगर यही हाल रहा तो अंततः कहना ही होगा “चाय वाले से देश नहीं संभलेगा”
Madhusudan Singh says
आपकी बहुत सारी खूबसूरत प्रतिक्रियाएं देख रहा हूँ मगर समयाभाव में प्रतिक्रिया नही दे पा रहा हूँ साथ ही आपकी रचनाएं नही पढ़ पा रहा हूँ जिसे इस माह के बाद जरूर पढ़ेंगे।
ShankySalty says
कोई बात नहीं सर बस एक अनुरोध है…..थोड़ा सा वक्त निकल इस प्रकाश पुंज पर्व दीपावली पर आपकी पंक्तियाँ पढ़ने कि बहुत इच्छा है🙏🙏🙏🙏
बस कृपा कर दें
Madhusudan Singh says
Ye mahina mere liye kaafi mayne rakhta hai phir bhi apke kahne par ek kavita likh di ….yaa yun kahen ki anaayaas likhaa gayee……jise maine post kiya hai…….swagat apka.
Madhusudan Singh says
Hamare samajh se galti chaywale ki nahi balki hamari hai….hamen muft men sab kuchh chahiye aur unhen sarkaar men rah kuchh achchha karne ke liye hamari sharton ko manna padegaa………bhaayee ham apnaa lobh kab tyaag karenge.
ShankySalty says
Shyaad kbhii ni😳